इस्लाम के इतिहास में फ़तह-ए-मक्का (मक्का की विजय) बहुत अहम घटना है। यह 630 ई. (8 हिजरी) में हुआ। यह जंग नहीं, बल्कि एक शांतिपूर्ण विजय थी, जिसमें मुसलमानों ने बिना बड़े संघर्ष के मक्का पर कब्ज़ा कर लिया।
फ़तह-ए-मक्का क्यों हुआ?
- हुदैबिया संधि (628 ई.): मुसलमानों और क़ुरैश के बीच एक समझौता हुआ था कि वे कुछ समय तक एक-दूसरे पर हमला नहीं करेंगे।
- लेकिन बाद में क़ुरैश ने इस संधि को तोड़ दिया।
- उन्होंने मुसलमानों के साथी क़बीलों पर हमला किया।
- इससे मुसलमानों को हक़ मिला कि वे मक्का की ओर बढ़ें।
मुसलमानों की तैयारी
हज़रत मुहम्मद ﷺ ने एक बड़ी सेना तैयार की।
- मुसलमानों की संख्या लगभग 10,000 थी।
- वे बहुत अनुशासित थे और उनकी नीयत साफ थी।
- उनका मकसद मक्का को जीतना था, लेकिन बिना खून-खराबे के।
मक्का की ओर कूच
मुसलमान बड़ी अनुशासन वाली सेना के साथ मक्का की ओर बढ़े।
- रास्ते में हज़रत मुहम्मद ﷺ ने अपने अनुयायियों को ताक़ीद की कि किसी निर्दोष को नुकसान न पहुँचाएँ।
- उनका संदेश था: “आज का दिन रहमत और माफी का दिन है।”
मक्का में प्रवेश
जब मुसलमान मक्का पहुँचे, तो क़ुरैश डर गए।
- कुछ क़ुरैश नेताओं ने आत्मसमर्पण कर दिया।
- मुसलमानों ने बिना खून-खराबे के मक्का में प्रवेश किया।
- हज़रत मुहम्मद ﷺ ने अपने झुके हुए सिर के साथ मक्का में प्रवेश किया, जैसे कि वे अल्लाह का शुक्र अदा कर रहे हों।
काबा की पवित्रता
मक्का पहुँचने के बाद हज़रत मुहम्मद ﷺ ने सबसे पहले काबा को बुतों से साफ किया।
- काबा में 360 मूर्तियाँ थीं।
- उन्होंने उन्हें गिरा दिया और कहा:
“हक़ आया और ग़लत मिट गया।” - काबा को फिर से अल्लाह की इबादत के लिए पवित्र कर दिया गया।
माफी और रहमत
मक्का के लोग डर रहे थे कि मुसलमान अब उनसे बदला लेंगे।
लेकिन हज़रत मुहम्मद ﷺ ने कहा:
- “आज मैं तुमसे वैसा ही कहता हूँ जैसा हज़रत यूसुफ़ (अलैहिस्सलाम) ने अपने भाइयों से कहा था – आज तुम पर कोई इल्ज़ाम नहीं। जाओ, तुम सब आज़ाद हो।”
यह सुनकर मक्का के लोग बहुत प्रभावित हुए। बहुत से लोग इस्लाम में दाख़िल हो गए।
फ़तह-ए-मक्का का परिणाम
- मुसलमानों ने बिना खून-खराबे के मक्का जीत लिया।
- काबा को मूर्तियों से पाक किया गया।
- मक्का के लोग इस्लाम की तरफ़ झुक गए।
- यह इस्लाम की सबसे बड़ी और निर्णायक जीत साबित हुई।
फ़तह-ए-मक्का का महत्व
- यह इस्लाम की शांतिपूर्ण विजय थी।
- मुसलमानों की ताक़त और एकता सबके सामने साबित हुई।
- इस घटना के बाद अरब के ज़्यादातर क़बीले इस्लाम में दाखिल हो गए।
- यह दिखा कि असली ताक़त माफी और रहमत में है, न कि बदले में।
फ़तह-ए-मक्का से सीख
- बदला लेने के बजाय माफी देना सबसे बड़ी ताक़त है।
- अल्लाह पर भरोसा करने वालों को बड़ी से बड़ी जीत मिलती है।
- इंसानियत और रहमत से दिलों को जीता जा सकता है।
- नबी ﷺ का आदर्श व्यवहार हर मुसलमान के लिए मिसाल है।
निष्कर्ष
फ़तह-ए-मक्का इस्लाम का सबसे बड़ा और शांतिपूर्ण विजय दिवस था। इसमें मुसलमानों ने दिखाया कि जीत केवल तलवार से नहीं, बल्कि रहमत, इंसानियत और अल्लाह पर भरोसा से होती है।
आज भी यह घटना हमें सिखाती है कि माफी और भलाई से इंसान के दिल बदले जा सकते हैं और समाज में शांति स्थापित की जा सकती है।