क़यामत पर ईमान (Faith in the Day of Judgment)
भूमिका
इस्लाम में ईमान के छः अरकान (Articles of Faith) में से एक बेहद अहम आधार है – क़यामत पर ईमान।
क़यामत वह दिन है जब पूरी कायनात खत्म होगी और हर इंसान अपने किए गए अमाल का हिसाब देने के लिए अल्लाह के सामने खड़ा होगा। मुसलमान के लिए यह ईमान ज़रूरी है क्योंकि यही दिन इंसान के अच्छे और बुरे कामों का निर्णय तय करेगा।
क़यामत का अर्थ
क़यामत का मतलब है – संपूर्ण दुनिया और इंसानी जीवन का आख़िरी हिसाब।
- इस दिन सूर फूँका जाएगा और सब जीवित और मृत पुनः जीवित किए जाएंगे।
- इंसानों के हर काम का लेखा-जोखा किया जाएगा।
- नेक लोगों को जन्नत में प्रवेश मिलेगा और बुरे लोग सजा पाएंगे।
कुरआन मजीद में अल्लाह कहते हैं:
“और क़यामत का दिन आएगा, तभी हर आत्मा अपने किए गए कामों का पूरा हिसाब देगी।”
(सूरह अल-ज़िलज़ाल 99:7-8)
क़यामत के दिन क्या होगा?
कुरआन और हदीस में क़यामत के दिन के कई संकेत दिए गए हैं:
- सूर (नफ़्ख़-ए-सूर) फूँकना
- फ़रिश्ता इस्राफ़ील (अ.स.) सूर फूँकेंगे।
- पहली फूँक से सभी जीव मृत हो जाएंगे।
- दूसरी फूँक से सभी जीवित होंगे।
- सभी का हिसाब
- इंसान के अच्छे और बुरे कामों का लेखा-जोखा होगा।
- नेक काम करने वालों के लिए जन्नत होगी।
- बुरे काम करने वालों के लिए सज़ा होगी।
- किताब (अमाल का रिकॉर्ड)
- हर इंसान के काम फ़रिश्तों द्वारा दर्ज किए गए होंगे।
- कुरआन में कहा गया: “हम हर इंसान को उसकी किताब देंगे; उसे पढ़ना स्वयं उसके लिए आसान होगा।” (सूरह अल-इन्शिक़ाक़ 84:7-8)
- सुलूक और मापदंड
- इंसान के अच्छे और बुरे कामों के आधार पर उसका मुक़ाम तय होगा।
- नेक लोग माफी और जन्नत पाएंगे।
- बुरे लोग सज़ा पाएंगे, लेकिन अल्लाह की रहमत भी सबसे बड़ी है।
क़यामत पर ईमान का मतलब
क़यामत पर ईमान रखने का अर्थ है:
- हर इंसान के कर्मों का हिसाब होगा – कोई भी काम अनदेखा नहीं रहेगा।
- अल्लाह न्याय करेगा – कोई अन्याय नहीं होगा।
- जन्नत और नर्क का यक़ीन – अच्छे कामों का इनाम और बुरे कामों की सज़ा निश्चित है।
- दुनिया में सही राह पर चलना – यह यक़ीन इंसान को बुराई से रोकता है और नेक काम करने के लिए प्रेरित करता है।
कुरआन में क़यामत पर ईमान की अहमियत
कुरआन मजीद में बार-बार कहा गया है कि जो इंसान क़यामत पर ईमान लाता है और अच्छे काम करता है, वही सही रास्ते पर है।
- “जो लोग ईमान लाए और नेक काम किए, उनके लिए जन्नत है, जिसमें नहरें बहती हैं।” (सूरह बक़रा 2:25)
- “जो अल्लाह और आख़िरत पर यक़ीन नहीं करता, उसके लिए दुखद अंजाम है।” (सूरह अल-ग़ाशियाह 88:21-25)
क़यामत पर ईमान क्यों ज़रूरी है?
- अच्छे और बुरे कामों का बोध
- इंसान जानता है कि उसके हर काम का हिसाब होगा।
- इसलिए वह बुराई से बचता है और नेक काम करता है।
- संसारिक जीवन का सही मकसद
- दुनिया केवल खेल और मज़ाक़ नहीं है।
- क़यामत का यक़ीन इंसान को याद दिलाता है कि जीवन अल्लाह की इबादत और नेक कामों के लिए है।
- अल्लाह पर भरोसा और धैर्य
- कठिनाइयों और तकलीफ़ों में इंसान धैर्य रखता है क्योंकि जानता है कि अल्लाह हर इंसान को उसकी मेहनत का पूरा फल देगा।
- आख़िरत में नजात का भरोसा
- नेक लोग इस यक़ीन के साथ अपने जीवन को अल्लाह की राह में सुधारते हैं।
अगर कोई क़यामत पर ईमान न लाए
जो इंसान क़यामत और हिसाब-किताब का इंकार करता है:
- वह ईमान में कमी रखता है।
- कुरआन में कहा गया है कि उसके लिए दुखद अंजाम है।
- ऐसे इंसान की जिंदगी केवल सांसारिक फायदों तक सीमित हो जाती है और आख़िरत में उसका नुकसान निश्चित है।
निष्कर्ष
क़यामत पर ईमान इस्लाम के छः अरकान में से एक अहम आधार है। यह इंसान को यह याद दिलाता है कि हर काम का हिसाब होगा, नेकियों को इनाम मिलेगा और बुराइयों का नतीजा भुगतना पड़ेगा।
इस यक़ीन के साथ मुसलमान अपनी ज़िन्दगी अल्लाह की राह में सुधारता है, नेक काम करता है और दुनिया तथा आख़िरत में कामयाब होने की उम्मीद रखता है…