जन्म: ज़ैनब और रुकय्या (र.अ.) के बाद
शौहर: हज़रत उस्मान बिन अफ़्फ़ान (र.अ.) (रुकय्या के इंतिक़ाल के बाद)
उम्मे कुलसूम (र.अ.) ने अपने पिता और इस्लाम के लिए बहुत सब्र किया।
रुकय्या (र.अ.) के इंतिक़ाल के बाद नबी ﷺ ने उनका निकाह हज़रत उस्मान (र.अ.) से कर दिया।
इस वजह से हज़रत उस्मान (र.अ.) को “ज़ुन-नूरैन” (दो नूरों वाला) कहा गया — क्योंकि उन्होंने नबी ﷺ की दो बेटियों से निकाह किया था।
उनका इंतिक़ाल 9 हिजरी में हुआ और नबी ﷺ ने उनकी क़ब्र में खुद उतरकर दफ़न किया।
हज़रत उम्मे कुलसूम (र.अ.)
रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की तीसरी साहबज़ादी थीं। इनकी माता हज़रत सैयदा खदीजा (र.अ.) थीं। अधिकतर किताबों में लिखा है कि हज़रत उम्मे कुलसूम की पैदाइश नबी-ए-अकरम (स.अ.व.) के नबी बनने से पहले हुई थी।इनका निकाह हिजरत-ए-नबवी से पहले अबू लहब के बेटे ‘उतैबा’ से हुआ था। जब रसूल-ए-करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने लोगों को इस्लाम की ओर बुलाया तो अबू लहब ने अपने बेटे ‘उतैबा’ को उम्मे कुलसूम से अलग करने का हुक्म दिया। ज्यादा दुश्मनी की वजह से निकाह तोड़ दिया गया। जुदाई के बाद उम्मे कुलसूम अपनी मां के साथ घर में रह रही थीं।अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अपनी दोनों बेटियों के लिए दुआ की और फिर उनको सम्बोधित कर कहा:
इस्लाम में निकाह हराम है – यानी मुसलमान बेटियों का निकाह मुशरिक (अल्लाह के साथ किसी और को मानने वाले) से नहीं किया जा सकता। रसूल (स.अ.व.) की बेटियों को मुशरिक पति से अलहदा (अलग) कर दिया गया।उसके बाद हज़रत उम्मे कुलसूम (र.अ.) ने हिजरत कर ली और अपनी बहन हज़रत फातिमा और हज़रत उस्मान (र.अ.) के घर में रहने लगीं। इस दौरान कई सालों तक शादी नहीं हुई।
जब हज़रत रुक़ैय्या (र.अ.) की मृत्यु हुई, तो हज़रत उस्मान (र.अ.) बहुत दुखी और अकेले हो गए। उन्हीं दिनों में हज़रत उम्मे कुलसूम, जो कि रसूलुल्लाह (सल्ल.) की बेटी थीं, घर में अकेली थीं। हज़रत उस्मान (र.अ.) ने रसूलुल्लाह (स.अ.व.) से इच्छा ज़ाहिर की कि वे उम्मे कुलसूम से निकाह करना चाहते हैं। हज़रत उस्मान (र.अ.) के इस निवेदन पर, रसूलुल्लाह (स.अ.व.) ने उनकी इच्छा पूरी की और अपनी बेटी उम्मे कुलसूम का निकाह हज़रत उस्मान (र.अ.) से कर दिया।निकाह के बाद हज़रत उम्मे कुलसूम (र.अ.) ने बड़ी सादगी और पाकीज़गी से हज़रत उस्मान (र.अ.) के साथ अपनी जिंदगी बिताई। हज़रत उम्मे कुलसूम (र.अ.) की इसी पाकीज़गी और नेक चलन की वजह से रसूलुल्लाह (स.अ.व.) हज़रत उस्मान (र.अ.) से बहुत खुश रहे। जब उम्मे कुलसूम (र.अ.) का इंतकाल हुआ, तो रसूलुल्लाह (स.अ.व.) स्वयं उनकी कब्र में उतरे और भरपूर दुख के साथ उनकी विदाई दी।हज़रत उम्मे कुलसूम (र.अ.) का जनाज़ा जन्नतुल बकी नामक कब्रिस्तान में दफन किया गया। आपकी कब्र के पास कई दूसरी साहाबियात भी दफन हैं। हज़रत आसिम बिन उम्मर से रिवायत है कि उम्मे कुलसूम (र.अ.) की कब्र पर बैठ कर रोना मना है।इस तरह उम्मे कुलसूम (र.अ.) की संक्षिप्त जीवनी पूरी होती है।