मंगोल हमला और जंग-ए-बग़दाद (1258 ईस्वी) – इस्लामी इतिहास का सबसे बड़ा सदमा
इस्लामी इतिहास में कई बार सल्तनतें उभरीं और कई बार गिर गईं। लेकिन एक ऐसा हादसा हुआ जिसने पूरी इस्लामी दुनिया को हिला दिया — यह था 1258 ईस्वी में मंगोलों का बग़दाद पर हमला। इस हमले ने न सिर्फ़ अब्बासी ख़िलाफ़त का अंत किया बल्कि सदियों तक इस्लामी तहज़ीब और इल्म को गहरी चोट पहुँचाई।
आइए इस पूरे वाक़िये को आसान भाषा में विस्तार से समझते हैं।
पृष्ठभूमि : मंगोलों का उभार
- 13वीं सदी में दुनिया की सबसे खतरनाक और तेज़ी से बढ़ने वाली ताक़त थी मंगोल साम्राज्य।
- मंगोलों का नेता चंगेज़ ख़ान (Genghis Khan, 1162–1227) था जिसने एशिया और यूरोप में खून-खराबे की आंधी चलाई।
- चंगेज़ ख़ान की मौत के बाद उसकी औलाद ने साम्राज्य को और फैलाया।
- चंगेज़ के पोते हलाकू ख़ान (Hulagu Khan) को ख़ास मिशन दिया गया:
- ईरान और इराक़ पर क़ब्ज़ा करना।
- बग़दाद में अब्बासी ख़िलाफ़त को मिटाना।
- इस्लामी दुनिया की ताक़त तोड़ना।
अब्बासी ख़िलाफ़त की हालत
- 750 ईस्वी से अब्बासी ख़िलाफ़त क़ायम थी और बग़दाद उसकी राजधानी था।
- शुरुआती सदियों में अब्बासी हुकूमत इल्म, फन, और तालीम का मरकज़ बनी।
- लेकिन 13वीं सदी तक आते-आते अब्बासी ख़लीफ़ा सिर्फ़ नाम के रह गए थे।
- असली ताक़त दरबार के वज़ीरों और फ़ौजी सरदारों के हाथ में थी।
- इस वजह से बग़दाद की हुकूमत कमज़ोर और बिखरी हुई थी।
हलाकू ख़ान की तैयारी
- हलाकू ख़ान ने बहुत बड़ी और मज़बूत फ़ौज इकट्ठी की।
- कहा जाता है कि उसकी फ़ौज में लाखों सैनिक, घुड़सवार, और इंजीनियर थे।
- उसने पहले ईरान और आसपास के इलाक़ों को अपने क़ब्ज़े में लिया।
- फिर उसने नज़रें बग़दाद पर टिकाईं।

बग़दाद पर हमला (1258 ईस्वी)
घेराबंदी
- जनवरी 1258 में हलाकू ख़ान बग़दाद की तरफ़ बढ़ा।
- उसने पूरे शहर को चारों तरफ़ से घेर लिया।
- बग़दाद की फ़ौज बहुत कमज़ोर थी और उनमें जज़्बा भी नहीं था।
धोखा और कमज़ोर ख़िलाफ़त
- अब्बासी ख़लीफ़ा मुस्तासिम बिल्लाह ने शुरुआत में हलाकू से सुलह की कोशिश की।
- लेकिन हलाकू ने धोखे से उन्हें यक़ीन दिलाया और फिर अचानक हमला कर दिया।
जंग और तबाही
- मंगोलों ने बग़दाद की दीवारें तोड़ डालीं।
- शहर के अंदर घुसकर उन्होंने कत्लेआम शुरू कर दिया।
- मस्जिदें, मकतब, लाइब्रेरी, और बाज़ार सब जलाकर राख कर दिए गए।
- कहा जाता है कि लाखों लोग मारे गए।
इल्म और किताबों की बर्बादी
- बग़दाद उस वक़्त इल्म का समंदर था।
- यहाँ की मशहूर “बैतु-ल-हिक्मा (House of Wisdom)” में दुनिया भर की किताबें मौजूद थीं।
- मंगोलों ने इन किताबों को दजला (Tigris River) में फेंक दिया।
- लिखा है कि नदी का पानी काली स्याही से रंग गया।
- इस बर्बादी ने इस्लामी दुनिया को सदियों पीछे धकेल दिया।
ख़लीफ़ा का अंत
- हलाकू ख़ान ने अब्बासी ख़लीफ़ा मुस्तासिम बिल्लाह को पकड़ लिया।
- उसे बेहद ज़लील तरीके से मौत दी गई।
- इस तरह 500 साल पुरानी अब्बासी ख़िलाफ़त का बग़दाद में अंत हो गया।
नतीजा और असर
- अब्बासी सल्तनत का पतन
- 1258 ईस्वी में अब्बासी हुकूमत का असली इराक़ वाला हिस्सा ख़त्म हो गया।
- हालांकि बाद में मिस्र में मामलूक हुकूमत ने एक नामी अब्बासी ख़लीफ़ा बिठाया, लेकिन उसकी हक़ीक़ी ताक़त नहीं थी।
- इस्लामी दुनिया का सदमा
- मुसलमानों को यक़ीन नहीं हुआ कि उनका इल्मी और तहज़ीबी मरकज़ इस तरह मिट जाएगा।
- इस हादसे ने पूरी उम्मत को हिला दिया।
- मंगोलों का डर
- बग़दाद की तबाही के बाद मंगोलों का ख़ौफ़ पूरी दुनिया में फैल गया।
- वे आगे शाम (Syria) और मिस्र की तरफ़ बढ़े।
- मुसलमानों की वापसी
- कुछ साल बाद 1260 में ऐन जलूत की जंग (Battle of Ain Jalut) में मामलूक मुसलमानों ने मंगोलों को पहली बड़ी हार दी।
- लेकिन तब तक बग़दाद बर्बाद हो चुका था।
सबक
- एक कमज़ोर और बिखरी हुई हुकूमत बड़ी से बड़ी सल्तनत को गिरा सकती है।
- इल्म और तालीम की अहमियत बहुत बड़ी है, लेकिन अगर उसकी हिफ़ाज़त न हो तो वह मिट सकता है।
- उम्मत की तफ़रक़ा (फूट) हमेशा बाहरी दुश्मनों को ताक़त देती है।
नतीजा
जंग-ए-बग़दाद (1258 ईस्वी) इस्लामी इतिहास का सबसे बड़ा हादसा माना जाता है।
- इसने अब्बासी सल्तनत का अंत किया।
- बग़दाद, जो कभी इल्म और तहज़ीब का मरकज़ था, खंडहर बन गया।
- लाखों मुसलमानों की जानें गईं और दुनिया का सबसे बड़ा लाइब्रेरी मिट गया।
फिर भी यह हादसा मुसलमानों के लिए सबक बना कि जब तक वे एकजुट रहेंगे और इल्म की हिफ़ाज़त करेंगे, तब तक दुश्मन उन्हें मिटा नहीं सकता।