रसूलों पर ईमान (Faith in the Prophets)
भूमिका.
इस्लाम में ईमान के छः अरकान (Articles of Faith) हैं। इनमें से एक अहम आधार है – रसूलों पर ईमान।
इसका मतलब है कि मुसलमान यह विश्वास रखे कि अल्लाह ने इंसानों की हिदायत (मार्गदर्शन) के लिए अपने चुने हुए पैग़म्बरों और रसूलों को भेजा। सभी रसूलों का काम एक ही था – अल्लाह की इबादत का पैग़ाम देना और इंसानों को नेक रास्ता दिखाना।
रसूल और नबी में अंतर
- नबी (Nabi) – वह इंसान जिसे अल्लाह ने संदेश दिया और लोगों को सही रास्ता दिखाने का काम सौंपा।
- रसूल (Rasool) – वह नबी जिसे अल्लाह ने किताब या नया शरीअत देने का आदेश दिया।
- यानी सभी रसूल नबी हैं, लेकिन सभी नबी रसूल नहीं होते।
सभी रसूलों का उद्देश्य
- अल्लाह की इबादत सिखाना – सिर्फ अल्लाह की पूजा करना।
- दुनिया और आख़िरत में भलाई – इंसानों को नेक रास्ता दिखाना।
- गुनाह और बुराई से रोकना – लोगों को सही और गलत की पहचान कराना।
- अल्लाह का पैग़ाम पहुँचाना – किताबें और हिदायत देना।
प्रमुख रसूलों के नाम और कार्य
1. हज़रत आदम (अ.स.)
- इंसानों के पहले नबी।
- अल्लाह ने उन्हें और हव्वा (हव्वा अ.स.) को इस्लाम का पहला पैग़ाम दिया।
2. हज़रत नूह (अ.स.)
- अपने कौम को अल्लाह के इबादत की हिदायत दी।
- काफ़िरों की नासमझी और बुराई के कारण वह क़यामत जैसी बाढ़ से बच गए।
3. हज़रत इब्राहीम (अ.स.)
- सिर्फ अल्लाह की इबादत का पैग़ाम फैलाया।
- मूर्तिपूजा का विरोध किया।
- अल्लाह के हुक्म से काबा का निर्माण किया।
4. हज़रत मूसा (अ.स.)
- इस्राईलियों की हिदायत के लिए भेजे गए।
- उन्हें तौरात दी गई।
- फ़िरौन और उसके काफ़िरों से संघर्ष किया।
5. हज़रत ईसा (अ.स.)
- इब्राहीमियों की उम्मत में भेजे गए।
- इंजील नाज़िल हुई।
- लोगों को अल्लाह की राह दिखाई और नेक काम करने का पैग़ाम दिया।
6. हज़रत मुहम्मद ﷺ
- आख़िरी रसूल और नबी।
- कुरआन मजीद उन्हें नाज़िल हुआ।
- उन्होंने हर इंसान के लिए दीन का मुकम्मल पैग़ाम पहुँचाया।
- उनका पैग़ाम आज भी पूरी दुनिया के लिए हिदायत है।
कुरआन में रसूलों पर ईमान की अहमियत
कुरआन मजीद में बार-बार कहा गया है कि जो इंसान रसूलों पर ईमान लाता है, वही सही राह पर है।
- “जो लोग अल्लाह और उसके रसूल पर ईमान लाए और नेक काम किए, उन्हें अल्लाह ने उच्च दर्ज़ा दिया और जन्नत में प्रवेश दिलाया।” (सूरह निसा 4:69)
- “हमने हर उम्मत में एक रसूल भेजा कि अल्लाह की इबादत करो और बुराई से बचो।” (सूरह अनबिया 21:25)
रसूलों पर ईमान क्यों ज़रूरी है?
- इंसान को सही मार्ग दिखाने के लिए – रसूलों के पैग़ाम के बिना इंसान भटक सकता है।
- क़यामत में नजात के लिए – रसूलों पर ईमान आख़िरी हिदायत मानने के लिए जरूरी है।
- अल्लाह की आज्ञा पालन करना – अल्लाह ने खुद कुरआन में कहा कि रसूलों की बात मानना अल्लाह की आज्ञा है।
- सच्चाई और ईमान की पहचान – हर रसूल ने इंसानों को यही सिखाया कि सिर्फ अल्लाह के लिए जीवन जियो।
अगर कोई रसूलों पर ईमान न लाए
- जो इंसान रसूलों के पैग़ाम को नकारता है, वह इस्लाम से बाहर माना जाता है।
- कुरआन में कहा गया है: “जो अल्लाह और उसके रसूलों का इंकार करे, उसके लिए दर्दनाक अज़ाब है।” (सूरह बक़रा 2:161)
निष्कर्ष
रसूलों पर ईमान इस्लाम का एक अहम आधार है। हर रसूल अल्लाह का संदेश लेकर आया और इंसानों को सही मार्ग दिखाया। मुसलमान का फ़र्ज़ है कि वह सभी रसूलों के पैग़ाम को मानें और खासकर आख़िरी रसूल हज़रत मुहम्मद ﷺ के पैग़ाम को अपनी ज़िन्दगी में उतारे।
रसूलों पर ईमान इंसान के ईमान को मुकम्मल बनाता है और उसे दुनिया और आख़िरत में कामयाबी दिलाता है।