हज़रत जुवैरिया बिन्ते हारिस (रज़ि॰अ॰)
परिचय
हज़रत जुवैरिया बिन्ते हारिस (रज़ि॰अ॰) उम्महातुल-मुमिनीन में से एक हैं। उनका असली नाम बर्रा बिन्ते हारिस था, लेकिन नबी मुहम्मद ﷺ ने उनका नाम बदलकर जुवैरिया रखा। वह अपने क़बीले की मुख़्तार औरत थीं और बाद में उम्मुल मोमिनीन का ऊँचा मुक़ाम हासिल किया। उनकी ज़िन्दगी इंसाफ़, रहमदिली और इस्लाम की ख़ूबसूरती का बड़ा सबूत है।
जन्म और परिवार
- हज़रत जुवैरिया (रज़ि॰अ॰) का जन्म मक्का के क़रीब क़बीला बनू मुस्तलिक में हुआ।
- उनके वालिद का नाम हारिस बिन अबी दिरार था, जो क़बीले के सरदार थे।
- वह बहुत इज़्ज़तदार और असरदार ख़ानदान से ताल्लुक़ रखती थीं।
बनू मुस्तलिक का वाक़िया
- 5 हिजरी (लगभग 627 ईस्वी) में बनू मुस्तलिक के क़बीले और मुसलमानों के बीच लड़ाई हुई।
- इस जंग में क़बीले के बहुत से लोग क़ैद कर लिए गए, जिनमें जुवैरिया (रज़ि॰अ॰) भी शामिल थीं।
- उन्हें एक सहाबी थाबित बिन कैस (रज़ि॰अ॰) के हिस्से में क़ैद के तौर पर मिला।
आज़ादी की कोशिश
- हज़रत जुवैरिया (रज़ि॰अ॰) बहुत समझदार और इज़्ज़तपसंद थीं।
- उन्होंने चाहा कि अपनी क़ैद से छुटकारा पाने के लिए मुक़ातबा (ख़रीदकर आज़ाद होना) का रास्ता अपनाएँ।
- इसी सिलसिले में वह नबी ﷺ की ख़िदमत में पहुँचीं ताकि उनकी मदद ली जा सके।
पैग़म्बर ﷺ से निकाह
- जब नबी ﷺ ने जुवैरिया (रज़ि॰अ॰) से मुलाक़ात की, तो उनकी इज़्ज़त और हालात को देखते हुए उनसे निकाह का प्रस्ताव दिया।
- जुवैरिया (रज़ि॰अ॰) ने खुशी-खुशी यह प्रस्ताव कबूल कर लिया।
- नबी ﷺ से निकाह के बाद सहाबा ने कहा: “अब उम्मुल मोमिनीन के क़बीले वालों को क़ैद में रखना ठीक नहीं।”
- नतीजा यह हुआ कि उनके सैकड़ों क़बीले वाले आज़ाद कर दिए गए।
- इस तरह उनका निकाह पूरे क़बीले के लिए रहमत और बरकत बना।
उम्मुल मोमिनीन का दर्ज़ा
- निकाह के बाद हज़रत जुवैरिया (रज़ि॰अ॰) उम्मुल मोमिनीन बनीं।
- वह बहुत इबादतगुज़ार थीं और अक्सर अपने कमरे में नमाज़ और ज़िक्र में मशग़ूल रहतीं।
- सहाबा और सहाबियात उनसे इस्लाम के मसाइल सीखा करते थे।
खूबियाँ और स्वभाव
- हज़रत जुवैरिया (रज़ि॰अ॰) सादगी और इबादत की ज़िन्दगी जीती थीं।
- वह नमाज़ और रोज़े की पाबंद थीं।
- उनका स्वभाव नर्म और दिल ग़रीबों के लिए बहुत रहमदिल था।
- उनकी इबादत का आलम यह था कि एक बार नबी ﷺ ने देखा कि वह सुबह से लेकर दोपहर तक एक ही जगह बैठकर अल्लाह का ज़िक्र कर रही हैं।
इस्लाम के लिए फ़ायदा
- उनके निकाह की वजह से बनू मुस्तलिक का पूरा क़बीला इस्लाम के क़रीब आ गया।
- बहुत से लोग इस्लाम ले आए और दुश्मनी की जगह मोहब्बत पैदा हो गई।
- उनका निकाह इस्लाम के लिए एक बड़ा मोड़ साबित हुआ।
दीनी योगदान
- हज़रत जुवैरिया (रज़ि॰अ॰) से कुछ हदीसें भी रिवायत हुई हैं।
- उन्होंने औरतों को दीनी मसाइल और इबादत की अहमियत बताई।
- उनकी ज़िन्दगी यह दिखाती है कि इस्लाम ने औरतों को इज़्ज़त और आज़ादी दी।
इन्तक़ाल
- हज़रत जुवैरिया (रज़ि॰अ॰) का इंतक़ाल 56 हिजरी (लगभग 676 ईस्वी) में मदीना मुनव्वरा में हुआ।
- उन्हें जन्नतुल-बक़ी क़ब्रिस्तान में दफ़न किया गया।
- इंतक़ाल के वक़्त उनकी उम्र लगभग 65 साल थी।
मुक़ाम और सबक़
- निकाह से बरकत – उनके निकाह की वजह से सैकड़ों लोग आज़ाद हुए।
- इबादत की मिसाल – वह लगातार ज़िक्र और नमाज़ में मशग़ूल रहती थीं।
- रहमदिली – उनका दिल गरीबों और ज़रूरतमंदों के लिए हमेशा खुला रहता था।
- उम्मुल मोमिनीन का दर्ज़ा – अल्लाह ने उन्हें मुमिनों की माँ बनाया, जो बहुत बड़ा मक़ाम है।
✅ नतीजा
हज़रत जुवैरिया बिन्ते हारिस (रज़ि॰अ॰) की ज़िन्दगी इस्लाम के इंसाफ़ और रहमदिली की ज़िंदा मिसाल है। वह उम्मुल मोमिनीन होने के साथ-साथ इबादत और सब्र की अलौकिक शख्सियत थीं। उनका निकाह पूरे क़बीले के लिए रहमत बना और उनकी इबादत हर मुसलमान के लिए मिसाल है।