अल-अंदलुस फ़तह (711 CE).


अल-अंदलुस फ़तह (711 CE) – इस्लामी इतिहास का सुनहरा अध्याय

इस्लामी इतिहास में कई बड़े मोड़ आए हैं, लेकिन उनमें से एक सबसे अहम मोड़ था अल-अंदलुस की फ़तह। यह घटना सन 711 ईस्वी में घटी थी जब मुसलमानों ने यूरोप की ज़मीन पर कदम रखा और एक नया दौर शुरू हुआ। इस फ़तह ने सिर्फ़ राजनीतिक नक़्शा ही नहीं बदला बल्कि इल्म, तहज़ीब, और समाज पर गहरा असर डाला। आइए इसे आसान भाषा में समझते हैं।


पृष्ठभूमि: अल-अंदलुस कहाँ है?

  • अल-अंदलुस उस इलाके को कहा जाता है जिसे आज हम स्पेन और पुर्तगाल के नाम से जानते हैं।
  • 8वीं सदी की शुरुआत में यहाँ विज़िगोथ (Visigoth) नाम की ईसाई हुकूमत थी।
  • उस वक़्त वहाँ राजनीतिक अस्थिरता थी। राजा रोडरिक (Roderic) और उसके विरोधियों के बीच झगड़े चल रहे थे।
  • इस स्थिति ने मुसलमानों के लिए दरवाज़ा खोला कि वे वहाँ अपनी ताक़त दिखाएँ।

फ़तह की शुरुआत

  • उत्तरी अफ्रीका (मोरक्को) में उस समय मुस्लिम गवर्नर मूसा बिन नुसैर (Musa bin Nusayr) तैनात थे।
  • उन्होंने अपने बहादुर सेनापति तारिक़ बिन ज़ियाद को एक छोटी सी फ़ौज के साथ स्पेन भेजा।
  • अप्रैल 711 में तारिक़ लगभग 7,000 सैनिकों के साथ जिब्राल्टर (Gibraltar) पहुँचे।
  • ‘जिब्राल्टर’ दरअसल अरबी शब्द “जबल तारिक़” (यानि “तारिक़ का पहाड़”) से बना है। आज भी ये नाम वहाँ मौजूद है।

जंग-ए-गुआदलते (Battle of Guadalete)

  • जुलाई 711 में सबसे अहम जंग हुई जिसे जंग-ए-गुआदलते कहा जाता है।
  • इस जंग में मुसलमान सेनापति तारिक़ बिन ज़ियाद और ईसाई राजा रोडरिक आमने-सामने हुए।
  • कहा जाता है कि तारिक़ बिन ज़ियाद ने अपनी फ़ौज का हौसला बढ़ाने के लिए जहाज़ जला दिए ताकि वापसी का ख्याल तक न रहे।
  • मुसलमानों ने अल्लाह पर भरोसा करके जंग लड़ी और नतीजा यह हुआ कि राजा रोडरिक हार गया और मारा गया।

तेज़ी से फ़तह

  • गुआदलते की जंग के बाद मुसलमानों ने एक-एक करके कई शहर फ़तह किए।
  • कॉर्डोबा, टोलेडो और सेविल जैसे अहम शहर मुसलमानों के कब्ज़े में आ गए।
  • यह इलाक़ा जल्दी ही इस्लामी सल्तनत का हिस्सा बन गया और यहाँ पर नई तहज़ीब की नींव रखी गई।

अल-अंदलुस की हुकूमत

  • शुरुआती दौर में अल-अंदलुस को उमय्यद ख़िलाफ़त (Damascus) के गवर्नरों के ज़रिये चलाया गया।
  • बाद में जब दमिश्क की उमय्यद ख़िलाफ़त ख़त्म हुई (750 CE), तो अब्दुर्रहमान प्रथम (Abdurrahman I) ने यहाँ स्वतंत्र उमय्यद हुकूमत क़ायम की।
  • इस तरह अल-अंदलुस एक मज़बूत और आज़ाद सल्तनत बन गई।
  • यहाँ लगभग 800 साल तक मुस्लिम हुकूमत रही, जब तक कि 1492 में ग्रेनेडा (Granada) गिरा नहीं।

इल्म और तहज़ीब का दौर

अल-अंदलुस सिर्फ़ जंग और फ़तह की कहानी नहीं है, बल्कि यह इल्म और तालीम का मरकज़ बन गया।

  • कॉर्डोबा उस समय दुनिया के सबसे रोशन शहरों में से एक था।
  • वहाँ बड़ी-बड़ी लाइब्रेरी, मस्जिदें और यूनिवर्सिटियाँ बनीं।
  • फ़लसफ़ा (Philosophy), तिब (Medicine), हंदसा (Mathematics), और इल्म-ए-नजूम (Astronomy) में यहाँ के विद्वान मशहूर हुए।
  • यूरोप के बहुत से लोग यहाँ पढ़ने आते थे।
  • इब्न-ए-रुश्द (Averroes), इब्न-ए-हज़्म, इब्न-ए-खल्दून जैसे नाम इसी तहज़ीब से जुड़े हैं।

अल-अंदलुस का असर यूरोप पर

  • अल-अंदलुस की तहज़ीब ने यूरोप की अंधेरी सदियों (Dark Ages) को रोशन कर दिया।
  • यहाँ से जाने वाली किताबें और तालीम बाद में यूरोप के Renaissance (नवीनीकरण) की बुनियाद बनीं।
  • यूरोप के कई बड़े विद्वानों ने अरबी किताबों का लैटिन में तर्जुमा किया।
  • यह असर सिर्फ़ इल्म तक नहीं रहा बल्कि खान-पान, पहनावा और कला तक पहुँचा।

गिरावट की कहानी

  • धीरे-धीरे ईसाई रियासतों (Reconquista) ने मुसलमानों को पीछे धकेलना शुरू किया।
  • 11वीं सदी के बाद मुसलमानों में आपसी मतभेद बढ़े और छोटी-छोटी रियासतें बन गईं।
  • 1492 में आख़िरी मुस्लिम रियासत ग्रेनेडा भी गिर गई।
  • इस तरह अल-अंदलुस का सुनहरा दौर ख़त्म हो गया।

नतीजा

अल-अंदलुस की फ़तह सिर्फ़ एक जंग नहीं थी, बल्कि यह इंसानी इतिहास की एक बड़ी तहरीक थी।

  • इसने साबित किया कि हौसला, ईमान और इल्म के ज़रिये दुनिया बदली जा सकती है।
  • अल-अंदलुस ने हमें यह सिखाया कि तहज़ीब और तालीम की ताक़त तलवार से भी बड़ी होती है
  • आज भी स्पेन की मस्जिदें, महल और इल्मी निशानियाँ उस दौर की याद दिलाती हैं।