ज़कात


💰 ज़कात – माल-दौलत की पाकी और बरकत


✨ ज़कात का मतलब क्या है?

ज़कात अरबी शब्द “ज़का” से निकला है, जिसका अर्थ है पाक होना और बढ़ना
इस्लाम में ज़कात का मतलब है – अपने माल-दौलत का एक तय हिस्सा गरीबों और ज़रूरतमंदों को देना। यह इंसान के दिल से लालच और कंजूसी को निकाल देता है और उसकी दौलत को बरकत देता है।


🌿 ज़कात की अहमियत

  • ज़कात इस्लाम का तीसरा स्तंभ है।
  • यह अमीर और गरीब के बीच फासला मिटाती है।
  • ज़कात समाज में इंसाफ़ और बराबरी लाती है।
  • यह इंसान की दौलत को पाक और हलाल बनाती है।

📖 ज़कात किन पर फ़र्ज़ है?

ज़कात हर उस मुसलमान पर फ़र्ज़ है जिसके पास इतना माल-दौलत हो जो निसाब की मात्रा तक पहुँच जाए।

  • निसाब का मतलब है वह कम से कम माल जिस पर ज़कात फ़र्ज़ होती है।
  • आमतौर पर सोना, चाँदी, नक़द पैसा, बिज़नेस का माल, खेती की पैदावार और जानवरों पर ज़कात लगती है।

🌸 ज़कात कितनी देनी होती है?

  • सोना, चाँदी और नक़द पैसा: कुल माल का 2.5%
  • खेती की पैदावार: हालात के अनुसार 5% या 10%
  • जानवरों पर: उनकी गिनती के अनुसार तय हिस्सा

🌟 ज़कात किसे दी जा सकती है?

कुरआन (सूरह तौबा 9:60) में बताया गया है कि ज़कात इन आठ तरह के लोगों को दी जा सकती है:

  1. गरीब (जिनके पास कुछ न हो)
  2. मिस्कीन (जरूरतमंद)
  3. ज़कात इकट्ठा करने वाले लोग
  4. नए मुसलमान
  5. क़र्ज़दार
  6. अल्लाह की राह में काम करने वाले
  7. मुसाफ़िर (यात्रा में परेशान व्यक्ति)
  8. गुलामों को आज़ाद करने में

💖 ज़कात देने के फायदे

  1. दिल की पाकी – यह लालच और स्वार्थ को खत्म करती है।
  2. माल की बरकत – ज़कात देने से दौलत घटती नहीं, बल्कि बढ़ती है।
  3. गरीबों की मदद – समाज में अमीरी-गरीबी का फासला घटता है।
  4. अल्लाह की रहमत – ज़कात देने वाला अल्लाह के करीब होता है।
  5. आख़िरत की कामयाबी – ज़कात न देने वालों के लिए सख़्त अज़ाब बताया गया है।

🕌 ज़कात और कुरआन

कुरआन में बार-बार ज़कात का हुक्म आया है।

  • “नमाज़ क़ायम करो और ज़कात अदा करो।” (सूरह बक़रा 2:43)
  • ज़कात न देने को गुनाह और दिल की सख़्ती बताया गया है।

🌞 ज़कात और समाज पर असर

  • समाज में भाईचारा बढ़ता है।
  • गरीब और अमीर में नफ़रत कम होती है।
  • समाज में भूख और मुफ़लिसी (गरीबी) घटती है।
  • ज़रूरतमंदों को सहारा मिलता है।

🤝 ज़कात और इंसान की ज़िम्मेदारी

ज़कात सिर्फ़ एक फर्ज़ नहीं बल्कि इंसान की जिम्मेदारी भी है। अल्लाह ने माल और दौलत देकर आज़माया है कि इंसान इसका इस्तेमाल सही करता है या नहीं।


🌈 ज़कात और आख़िरत

जो लोग ज़कात अदा करते हैं, उनके लिए जन्नत की खुशख़बरी है। और जो लोग ज़कात नहीं देते, उनके लिए कुरआन और हदीस में सख़्त सज़ा बताई गई है।


✅ निष्कर्ष

ज़कात इस्लाम का तीसरा स्तंभ है और यह इंसान की दौलत को पाक करने का ज़रिया है। ज़कात से न केवल ग़रीबों और ज़रूरतमंदों की मदद होती है, बल्कि अमीर की दौलत में बरकत भी आती है। ज़कात इंसान को यह सिखाती है कि असली मालिक अल्लाह है और दौलत सिर्फ़ एक इम्तिहान है। जो इंसान दिल से ज़कात अदा करता है, वह दुनिया और आख़िरत दोनों में कामयाब होता है।