हज़रत उम्मे सलमा (रज़ि॰अ॰)


हज़रत उम्मे सलमा (रज़ि॰अ॰)

परिचय

हज़रत उम्मे सलमा (रज़ि॰अ॰) उम्महातुल-मुमिनीन में से एक हैं। उनका असली नाम हिंद बिन्ते अबू उमैया था। वह नबी मुहम्मद ﷺ की पत्नी और मुमिनों की माँ हैं। उनकी ज़िन्दगी इस्लाम की कई अहम सीखों और मिसालों से भरी हुई है। उन्होंने अपने ज्ञान, सब्र और समझदारी से उम्मत को मार्गदर्शन दिया।


जन्म और परिवार

  • हज़रत उम्मे सलमा (रज़ि॰अ॰) का जन्म मक्का में हुआ।
  • उनके वालिद का नाम अबू उमैया सुहैल बिन मग़ीरा था, जो उस समय क़ुरैश के प्रभावशाली व्यक्तियों में से थे।
  • वालिदा का नाम आतिका बिन्ते आमिर था।
  • वह बचपन से ही बुद्धिमान, समझदार और धार्मिक माहौल में पली-बढ़ीं।

पहला निकाह

  • उनका पहला निकाह सहाबी अबू सलमा (रज़ि॰अ॰) से हुआ था।
  • अबू सलमा (रज़ि॰अ॰) नबी ﷺ के करीबी औरत-दोस्त सहाबी थे।
  • इस्लाम के शुरुआती दिनों में जब मुसलमानों पर अत्याचार बढ़े, तो वह अपने पति के साथ हिजरत-ए-अबीसीनिया (हब्शा) गए।
  • वहां उन्होंने मुसलमानों के लिए शरण और सुरक्षा पाई।

पति की शहादत और कठिनाइयाँ

  • हिजरत के दौरान अबू सलमा (रज़ि॰अ॰) शहीद हो गए।
  • उम्मे सलमा (रज़ि॰अ॰) चार बच्चों के साथ अकेली रह गईं।
  • उन्होंने धैर्य और ईमान के साथ इस कठिन परिस्थिति का सामना किया।

पैग़म्बर ﷺ से निकाह

  • अबू सलमा (रज़ि॰अ॰) की शहादत के बाद उम्मे सलमा (रज़ि॰अ॰) का निकाह पैग़म्बर मुहम्मद ﷺ से हुआ।
  • उन्होंने कुछ शर्तें रखीं, जैसे अपने बच्चों का भरण-पोषण और व्यक्तिगत आज़ादी।
  • नबी ﷺ ने उन्हें पूरा अधिकार दिया और उनका निकाह इस्लाम की शिक्षा और सुकून की मिसाल बन गया।
  • निकाह के बाद वह उम्मुल मोमिनीन बन गईं और उनका उच्च स्थान निश्चित हुआ।

अक़्ल और मशवरे

  • हज़रत उम्मे सलमा (रज़ि॰अ॰) बहुत समझदार और दूरदर्शी थीं।
  • सुल्ह-ए-हुदैबिया के समय, जब सहाबा को कोई फैसला लेने में दिक्कत हो रही थी, उन्होंने नबी ﷺ को सही सलाह दी।
  • उनकी यह सलाह पूरी उम्मत के लिए एक अमूल्य सबक़ बन गई।

दीनी योगदान

  • हज़रत उम्मे सलमा (रज़ि॰अ॰) ने औरतों को इस्लाम की शिक्षा दी।
  • उन्होंने हदीसें रिवायत की और महिलाओं तक पैग़म्बर ﷺ की हिदायतें पहुँचाईं।
  • उनके माध्यम से लगभग 200 हदीसें आज भी सुरक्षित हैं।

खूबियाँ और स्वभाव

  1. सब्र और धैर्य – पति की शहादत और कठिन परिस्थितियों में भी सब्र किया।
  2. समझदारी – मुश्किल हालात में सही मार्गदर्शन किया।
  3. इबादतगुज़ारी – नमाज़, रोज़ा और दुआ में हमेशा आगे रहतीं।
  4. औरतों की मार्गदर्शिका – हदीसों और दीनी मसाइल में महिलाओं को सही राह दिखाई।

इन्तक़ाल

  • हज़रत उम्मे सलमा (रज़ि॰अ॰) का इंतक़ाल 62 हिजरी (लगभग 680 ईस्वी) में हुआ।
  • उन्हें मदीना मुनव्वरा के जन्नतुल-बक़ी क़ब्रिस्तान में दफ़न किया गया।
  • उनका लंबा जीवन इस बात का सबूत है कि उन्होंने इस्लाम की सेवा में अपनी पूरी ऊर्जा लगाई।

मुक़ाम और सबक़

  • उम्मे सलमा (रज़ि॰अ॰) की ज़िन्दगी से मुसलमानों को यह सबक़ मिलता है कि कठिनाइयों में सब्र करना और अल्लाह पर भरोसा रखना सबसे बड़ी ताक़त है।
  • उनका निकाह और दीनी योगदान यह दर्शाता है कि महिलाएँ भी इस्लाम में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं।
  • उम्मुल मोमिनीन के रूप में उनका मुक़ाम हमेशा रोशन रहेगा।

✅ नतीजा

हज़रत उम्मे सलमा (रज़ि॰अ॰) की ज़िन्दगी सब्र, ईमान और ज्ञान की मिसाल है। उन्होंने अपने बच्चों, मुसलमानों और औरतों के लिए शिक्षा, मार्गदर्शन और सहयोग दिया। उनका जीवन हर मुसलमान औरत के लिए प्रेरणा का स्रोत है।