तक़दीर पर ईमान..


तक़दीर पर ईमान (Faith in Divine Decree / Predestination)

भूमिका

इस्लाम में ईमान के छः अरकान (Articles of Faith) में से अंतिम और बहुत अहम आधार है – तक़दीर पर ईमान
तक़दीर का अर्थ है – अल्लाह का ज्ञान और हुक्म, जो पहले से तय है। इसका मतलब यह नहीं कि इंसान का मेहनत बेकार है, बल्कि अल्लाह जानता है और तय करता है कि हर इंसान की ज़िन्दगी में क्या होगा।


तक़दीर का मतलब

तक़दीर (Qadar / Predestination) का अर्थ है:

  1. अल्लाह ने हर चीज़ का ज्ञान पहले से रखा है।
  2. दुनिया में हर घटना, छोटी-बड़ी, उसके हुक्म के तहत होती है।
  3. इंसान के अच्छे और बुरे कर्मों का ज्ञान अल्लाह के पास है।
  4. इस ज्ञान और हुक्म में इंसान की जिम्मेदारी और आज़ादी भी शामिल है।

कुरआन में कहा गया है:

“और अल्लाह ने हर चीज़ को पहले से तय कर रखा है।”
(सूरह अल-हदीद 57:22)


तक़दीर और इंसान की आज़ादी

कुछ लोग सोचते हैं कि तक़दीर का मतलब इंसान की मेहनत बेकार है। यह गलत है।

  • इंसान की आजादी है – वह सही या गलत काम चुन सकता है।
  • इंसान के चुनाव और उसके कर्म अल्लाह की निगरानी में हैं।
  • अल्लाह की तक़दीर का मतलब है कि वह पहले से जानता है कि इंसान क्या करेगा।
  • इंसान को जिम्मेदार ठहराया जाएगा उसके कर्मों के लिए।

कुरआन में आया:

“जो कोई नेक काम करेगा, उसका इनाम उसके लिए होगा और जो बुरा करेगा, उसकी सज़ा उसके लिए होगी।” (सूरह अल-इन्शिक़ाक़ 84:7-8)


तक़दीर के चार पहलू

  1. अल्लाह का इल्म (ज्ञान)
    • अल्लाह को सब कुछ पहले से पता है – इंसान का जन्म, मौत, सोच, और हर कर्म।
  2. अल्लाह का हुक्म
    • जो कुछ भी दुनिया में घटता है, वह अल्लाह के हुक्म और इरादे के तहत होता है।
  3. अल्लाह की रचना
    • हर इंसान की ताक़त, शरीर, बुद्धि, और परिस्थितियाँ अल्लाह ने बनाई हैं।
  4. अच्छा और बुरा
    • अल्लाह ने तय किया है कि नेक लोग इनाम पाएंगे और बुरे लोग सज़ा पाएंगे, लेकिन इंसान की कोशिश और चुनाव भी मायने रखते हैं।

तक़दीर पर ईमान का महत्व

  1. धैर्य और सुकून
    • मुसीबत और तकलीफ़ों में इंसान जानता है कि यह अल्लाह की मर्ज़ी से है और धैर्य रखता है।
  2. शुक्र और कृतज्ञता
    • अल्लाह की नेमतों और अच्छी चीज़ों के लिए इंसान शुक्र अदा करता है।
  3. कामयाबी के लिए प्रयास
    • इंसान अपनी मेहनत और नेक कोशिश करता है क्योंकि यह उसके कर्म हैं जो उसकी तक़दीर को सकारात्मक बना सकते हैं।
  4. गुनाह और गलतियों से बचाव
    • इंसान जानता है कि बुराई का हिसाब लिया जाएगा, इसलिए वह अच्छे कर्म करता है।

कुरआन और हदीस में तक़दीर

  • कुरआन में कहा गया: “अल्लाह जो कुछ देता है, वही सबसे अच्छा है और जो कुछ रोकता है, वही सबसे अच्छा है।” (सूरह अल-बीकरा 2:216)
  • हज़रत मुहम्मद ﷺ ने कहा: “हर इंसान का भाग्य उसके जन्म से पहले लिखा गया है, इसलिए अपने अच्छे कर्मों में मेहनत करो।”

तक़दीर पर ईमान रखने वाले की ज़िन्दगी

  1. धैर्यवान – परेशानियों में सब्र रखते हैं।
  2. शुक्रगुज़ार – अल्लाह की नेमतों के लिए हमेशा आभारी रहते हैं।
  3. सतर्क और मेहनती – बुराई और गुनाह से दूर रहते हैं।
  4. भरोसेमंद – जानकार होते हैं कि अल्लाह उनके लिए सबसे अच्छा सोचता है।

अगर कोई तक़दीर पर ईमान न लाए

  • अल्लाह का यह ज्ञान न मानने वाला इंसान अपने कर्मों का सही हिसाब नहीं समझ पाएगा।
  • उसका ईमान अधूरा होगा।
  • कुरआन में कहा गया है कि जो अल्लाह की तक़दीर को नकारे, वह बहुत दूर गुमराह है।

निष्कर्ष

तक़दीर पर ईमान इस्लाम के छः अरकान में से अंतिम आधार है।
यह इंसान को याद दिलाता है कि:

  • हर घटना अल्लाह के हुक्म के अनुसार होती है।
  • इंसान के कर्म मायने रखते हैं और उसका हिसाब लिया जाएगा।
  • दुनिया में धैर्य, मेहनत, शुक्र और नेक नीयत से जीवन जीना जरूरी है।

तक़दीर पर ईमान रखने वाला इंसान पूरी तरह अल्लाह पर भरोसा रखता है, मेहनत करता है और आख़िरत की तैयारी करता है।


क़यामत पर ईमान.


क़यामत पर ईमान (Faith in the Day of Judgment)

भूमिका

इस्लाम में ईमान के छः अरकान (Articles of Faith) में से एक बेहद अहम आधार है – क़यामत पर ईमान
क़यामत वह दिन है जब पूरी कायनात खत्म होगी और हर इंसान अपने किए गए अमाल का हिसाब देने के लिए अल्लाह के सामने खड़ा होगा। मुसलमान के लिए यह ईमान ज़रूरी है क्योंकि यही दिन इंसान के अच्छे और बुरे कामों का निर्णय तय करेगा।


क़यामत का अर्थ

क़यामत का मतलब है – संपूर्ण दुनिया और इंसानी जीवन का आख़िरी हिसाब

  • इस दिन सूर फूँका जाएगा और सब जीवित और मृत पुनः जीवित किए जाएंगे।
  • इंसानों के हर काम का लेखा-जोखा किया जाएगा।
  • नेक लोगों को जन्नत में प्रवेश मिलेगा और बुरे लोग सजा पाएंगे।

कुरआन मजीद में अल्लाह कहते हैं:

“और क़यामत का दिन आएगा, तभी हर आत्मा अपने किए गए कामों का पूरा हिसाब देगी।”
(सूरह अल-ज़िलज़ाल 99:7-8)


क़यामत के दिन क्या होगा?

कुरआन और हदीस में क़यामत के दिन के कई संकेत दिए गए हैं:

  1. सूर (नफ़्ख़-ए-सूर) फूँकना
    • फ़रिश्ता इस्राफ़ील (अ.स.) सूर फूँकेंगे।
    • पहली फूँक से सभी जीव मृत हो जाएंगे।
    • दूसरी फूँक से सभी जीवित होंगे।
  2. सभी का हिसाब
    • इंसान के अच्छे और बुरे कामों का लेखा-जोखा होगा।
    • नेक काम करने वालों के लिए जन्नत होगी।
    • बुरे काम करने वालों के लिए सज़ा होगी।
  3. किताब (अमाल का रिकॉर्ड)
    • हर इंसान के काम फ़रिश्तों द्वारा दर्ज किए गए होंगे।
    • कुरआन में कहा गया: “हम हर इंसान को उसकी किताब देंगे; उसे पढ़ना स्वयं उसके लिए आसान होगा।” (सूरह अल-इन्शिक़ाक़ 84:7-8)
  4. सुलूक और मापदंड
    • इंसान के अच्छे और बुरे कामों के आधार पर उसका मुक़ाम तय होगा।
    • नेक लोग माफी और जन्नत पाएंगे।
    • बुरे लोग सज़ा पाएंगे, लेकिन अल्लाह की रहमत भी सबसे बड़ी है।

क़यामत पर ईमान का मतलब

क़यामत पर ईमान रखने का अर्थ है:

  1. हर इंसान के कर्मों का हिसाब होगा – कोई भी काम अनदेखा नहीं रहेगा।
  2. अल्लाह न्याय करेगा – कोई अन्याय नहीं होगा।
  3. जन्नत और नर्क का यक़ीन – अच्छे कामों का इनाम और बुरे कामों की सज़ा निश्चित है।
  4. दुनिया में सही राह पर चलना – यह यक़ीन इंसान को बुराई से रोकता है और नेक काम करने के लिए प्रेरित करता है।

कुरआन में क़यामत पर ईमान की अहमियत

कुरआन मजीद में बार-बार कहा गया है कि जो इंसान क़यामत पर ईमान लाता है और अच्छे काम करता है, वही सही रास्ते पर है।

  • “जो लोग ईमान लाए और नेक काम किए, उनके लिए जन्नत है, जिसमें नहरें बहती हैं।” (सूरह बक़रा 2:25)
  • “जो अल्लाह और आख़िरत पर यक़ीन नहीं करता, उसके लिए दुखद अंजाम है।” (सूरह अल-ग़ाशियाह 88:21-25)

क़यामत पर ईमान क्यों ज़रूरी है?

  1. अच्छे और बुरे कामों का बोध
    • इंसान जानता है कि उसके हर काम का हिसाब होगा।
    • इसलिए वह बुराई से बचता है और नेक काम करता है।
  2. संसारिक जीवन का सही मकसद
    • दुनिया केवल खेल और मज़ाक़ नहीं है।
    • क़यामत का यक़ीन इंसान को याद दिलाता है कि जीवन अल्लाह की इबादत और नेक कामों के लिए है।
  3. अल्लाह पर भरोसा और धैर्य
    • कठिनाइयों और तकलीफ़ों में इंसान धैर्य रखता है क्योंकि जानता है कि अल्लाह हर इंसान को उसकी मेहनत का पूरा फल देगा।
  4. आख़िरत में नजात का भरोसा
    • नेक लोग इस यक़ीन के साथ अपने जीवन को अल्लाह की राह में सुधारते हैं।

अगर कोई क़यामत पर ईमान न लाए

जो इंसान क़यामत और हिसाब-किताब का इंकार करता है:

  • वह ईमान में कमी रखता है।
  • कुरआन में कहा गया है कि उसके लिए दुखद अंजाम है।
  • ऐसे इंसान की जिंदगी केवल सांसारिक फायदों तक सीमित हो जाती है और आख़िरत में उसका नुकसान निश्चित है।

निष्कर्ष

क़यामत पर ईमान इस्लाम के छः अरकान में से एक अहम आधार है। यह इंसान को यह याद दिलाता है कि हर काम का हिसाब होगा, नेकियों को इनाम मिलेगा और बुराइयों का नतीजा भुगतना पड़ेगा।
इस यक़ीन के साथ मुसलमान अपनी ज़िन्दगी अल्लाह की राह में सुधारता है, नेक काम करता है और दुनिया तथा आख़िरत में कामयाब होने की उम्मीद रखता है…

अल्लाह की किताबों पर ईमान


अल्लाह की किताबों पर ईमान (Faith in the Divine Books)

भूमिका

इस्लाम में ईमान के छः अरकान (Articles of Faith) हैं। उनमें से एक अहम और बुनियादी आधार है – अल्लाह की किताबों पर ईमान
इसका मतलब है कि मुसलमान यह विश्वास रखे कि अल्लाह ने अपनी मख़लूक़ की हिदायत (मार्गदर्शन) के लिए अलग-अलग समय में अपने चुने हुए पैग़म्बरों पर आसमानी किताबें और सहीफ़े (पुस्तिकाएँ) नाज़िल कीं। इन किताबों में सबसे आख़िरी और मुकम्मल किताब है – कुरआन मजीद


अल्लाह की किताबों पर ईमान का मतलब

अल्लाह की किताबों पर ईमान लाने का अर्थ यह है कि:

  1. यह मानना कि अल्लाह ने अपने रसूलों पर किताबें नाज़िल कीं।
  2. हर किताब अपने ज़माने में हक़ (सत्य) और मार्गदर्शन थी।
  3. उन किताबों में अल्लाह का पैग़ाम और इंसानों के लिए सही राह थी।
  4. अब सभी किताबों में सबसे आख़िरी और सुरक्षित किताब कुरआन मजीद है, जो क़यामत तक बाक़ी रहेगी।

आसमानी किताबें और सहीफ़े

कुरआन और हदीस से हमें जिन आसमानी किताबों और सहीफ़ों की जानकारी मिलती है, उनमें मुख्य रूप से ये हैं:

1. तौरात (Torah)

  • अल्लाह ने यह किताब हज़रत मूसा (अ.स.) पर नाज़िल की।
  • यह बनी इस्राईल (यहूदियों) की हिदायत के लिए थी।
  • इसमें अल्लाह के हुक्म और शरीअत (धार्मिक क़ानून) दिए गए थे।

2. ज़बूर (Psalms)

  • अल्लाह ने यह किताब हज़रत दाऊद (अ.स.) पर नाज़िल की।
  • इसमें नसीहतें और अल्लाह की हम्द (प्रशंसा) के तराने थे।

3. इंजील (Gospel)

  • अल्लाह ने यह किताब हज़रत ईसा (अ.स.) पर नाज़िल की।
  • इसमें अल्लाह की रहमत और इंसानों के लिए मार्गदर्शन का पैग़ाम था।
  • बाद में इसके असली रूप में बहुत तब्दीली कर दी गई।

4. कुरआन मजीद (Qur’an)

  • अल्लाह की आख़िरी और मुकम्मल किताब।
  • हज़रत मुहम्मद ﷺ पर नाज़िल हुई।
  • इसमें हर ज़माने और हर इंसान के लिए हिदायत है।
  • कुरआन आज भी बिल्कुल उसी रूप में मौजूद है, जैसे 1400 साल पहले नाज़िल हुआ था।
  • अल्लाह ने वादा किया है: “हमने ही यह ज़िक्र (कुरआन) नाज़िल किया है और हम ही इसके हिफ़ाज़त करने वाले हैं।”
    (कुरआन – सूरह हिज्र 15:9)

5. सहीफ़े (Small Scrolls/Booklets)

  • हज़रत इब्राहीम (अ.स.) और हज़रत मूसा (अ.स.) पर कुछ सहीफ़े (छोटी किताबें) भी नाज़िल की गईं।

कुरआन – आख़िरी और मुकम्मल किताब

कुरआन मजीद अल्लाह की सबसे आख़िरी किताब है। इसकी कुछ ख़ास बातें:

  1. यह मुकम्मल (Complete) है – इसमें दीन का पूरा कानून और इंसान की ज़िन्दगी के हर पहलू का मार्गदर्शन मौजूद है।
  2. यह सार्वभौमिक (Universal) है – यह सिर्फ अरबों या किसी एक कौम के लिए नहीं, बल्कि पूरी इंसानियत के लिए है।
  3. यह महफ़ूज़ (Protected) है – इसमें कोई तब्दीली नहीं हो सकती।
  4. यह रहमत है – कुरआन इंसान के लिए हिदायत, रहमत और रोशनी है।
    • “यह किताब उस में कोई शक नहीं, हिदायत है परहेज़गारों के लिए।” (सूरह बक़रा 2:2)

किताबों पर ईमान की अहमियत

  1. अल्लाह की रहमत का एहसास – किताबें यह बताती हैं कि अल्लाह ने इंसान को अकेला नहीं छोड़ा, बल्कि उसकी हिदायत के लिए अपना पैग़ाम भेजा।
  2. सही-ग़लत का फर्क समझना – किताबों से इंसान को पता चलता है कि कौन-सा रास्ता सही है और कौन-सा ग़लत।
  3. आख़िरी हक़ीक़त को मानना – कुरआन को मानना और उस पर अमल करना ईमान की शर्त है।
  4. उम्मतों की कहानी – पिछली किताबों से हमें यह भी समझ आता है कि पहले की उम्मतें क्यों गुमराह हुईं और उनका अंजाम क्या हुआ।

अगर कोई अल्लाह की किताबों को न माने?

जो इंसान अल्लाह की किताबों का इंकार करता है, उसका ईमान पूरा नहीं माना जाएगा।
कुरआन कहता है:

“जो अल्लाह और उसके फ़रिश्तों और उसकी किताबों और उसके रसूलों और आख़िरत के दिन का इंकार करे, वह बहुत दूर गुमराह हो गया।”
(सूरह निसा 4:136)


निष्कर्ष

अल्लाह की किताबों पर ईमान लाना हर मुसलमान के लिए अनिवार्य है। यह यक़ीन रखना कि अल्लाह ने अपनी मख़लूक़ की हिदायत के लिए आसमानी किताबें भेजीं, और अब कुरआन मजीद आख़िरी और मुकम्मल किताब है, जिस पर अमल करना हर मुसलमान का फ़र्ज़ है।
जो इंसान कुरआन को अपनी ज़िन्दगी की रहनुमाई बनाएगा, वही दुनिया और आख़िरत में कामयाब होगा।




फ़रिश्तों पर ईमान.


फ़रिश्तों पर ईमान (Faith in Angels in Islam)

भूमिका…….

इस्लाम में ईमान के छः अरकान (Articles of Faith) हैं। उनमें से एक अहम आधार है – फ़रिश्तों पर ईमान। मुसलमान के लिए यह ज़रूरी है कि वह अल्लाह पर, उसके फ़रिश्तों पर, उसकी किताबों पर, उसके रसूलों पर, क़यामत के दिन पर और तक़दीर पर ईमान लाए।
फ़रिश्तों पर ईमान का मतलब है – दिल से मानना कि फ़रिश्ते हक़ (सच्चाई) हैं, अल्लाह ने उन्हें पैदा किया है और वे हमेशा अल्लाह के हुक्म के मुताबिक काम करते हैं।


फ़रिश्ते कौन हैं?

  • फ़रिश्ते अल्लाह की मख़लूक़ (सृष्टि) हैं।
  • उन्हें अल्लाह ने नूर (प्रकाश) से पैदा किया है।
  • वे अदृश्य (नज़र न आने वाले) हैं, लेकिन हर वक्त इंसान और दुनिया के कामों में अल्लाह के हुक्म से लगे रहते हैं।
  • फ़रिश्तों की कोई अपनी मर्ज़ी नहीं होती, वे वही करते हैं जो अल्लाह उन्हें हुक्म देता है।
  • कुरआन कहता है: “वे अल्लाह की नाफ़रमानी नहीं करते जिस चीज़ का हुक्म उन्हें दिया जाता है और वही करते हैं जो उन्हें हुक्म दिया जाता है।”
    (कुरआन – सूरह तहरीम 66:6)

फ़रिश्तों पर ईमान का मतलब

फ़रिश्तों पर ईमान का अर्थ यह है कि:

  1. यह मानना कि वे अल्लाह की सच्ची मख़लूक़ हैं।
  2. उनका काम सिर्फ अल्लाह की इबादत करना और उसके हुक्मों को पूरा करना है।
  3. उनके नाम, काम और ज़िम्मेदारियों पर यक़ीन रखना (जितना कुरआन और हदीस से साबित है)।
  4. यह विश्वास करना कि उनकी तादाद बहुत ज़्यादा है, जिन्हें सिर्फ अल्लाह जानता है।

अहम फ़रिश्तों के नाम और उनके काम

  1. हज़रत जिब्रील (अ.स.)
    • अल्लाह का कलाम (वही/पैग़ाम) नबियों तक पहुँचाना।
    • कुरआन मजीद भी जिब्रील (अ.स.) के ज़रिए नबी ﷺ तक पहुंचाया गया।
  2. हज़रत मीकाईल (अ.स.)
    • बारिश और रोज़ी की तक़सीम (वितरण) का काम।
    • ज़मीन पर जानदारों की ज़रूरतें पूरी करने के लिए अल्लाह के हुक्म से ज़िम्मेदार।
  3. हज़रत इस्राफ़ील (अ.स.)
    • क़यामत के दिन सूर (नफ़्ख़-ए-सूर) फूंकने का काम करेंगे।
    • एक फूँक से सारी कायनात खत्म हो जाएगी, और दूसरी फूँक से सब लोग दोबारा ज़िंदा किए जाएंगे।
  4. हज़रत अज़्राईल (अ.स.) – मलिकुल मौत (मौत का फ़रिश्ता)
    • इंसानों की रूह क़ब्ज़ करना (जान लेना)।
  5. मुनकर और नक़ीर
    • कब्र में सवाल करने वाले फ़रिश्ते।
    • मरने के बाद हर इंसान से पूछेंगे – “तुम्हारा रब कौन है? तुम्हारा नबी कौन है? तुम्हारा दीन क्या है?”
  6. किरामन कातिबीन
    • हर इंसान के साथ दो फ़रिश्ते रहते हैं।
    • एक उसके नेक काम लिखता है, और दूसरा उसके गुनाह।
    • कुरआन कहता है: “जब इंसान कोई बात ज़ुबान से कहता है, तो उसके पास एक निगहबान (फ़रिश्ता) मौजूद होता है।” (सूरह क़ाफ़ 50:18)
  7. मलिक (जहन्नम का फ़रिश्ता)
    • जहन्नम (नर्क) का काम संभालते हैं।
  8. रज़वान (जन्नत का फ़रिश्ता)
    • जन्नत के दरवाज़ों के रखवाले हैं।

फ़रिश्तों की खूबियाँ

  • वे अल्लाह की लगातार तस्बीह (महिमा) करते रहते हैं।
  • उन्हें भूख, प्यास, नींद या थकान नहीं होती।
  • वे गुनाह नहीं करते।
  • उनकी गिनती इतनी ज़्यादा है कि इंसान उसका अंदाज़ा नहीं लगा सकता।
    • हदीस में आता है कि बैतुल-मआमूर (आसमान में काबा जैसा घर) में रोज़ 70,000 फ़रिश्ते तवाफ़ करते हैं और फिर कभी उनकी बारी दोबारा नहीं आती।

फ़रिश्तों पर ईमान की अहमियत

  1. अल्लाह की ताक़त और हिकमत को समझना – इतनी बड़ी मख़लूक़ सिर्फ अल्लाह की हुक्मबरदार है।
  2. इंसान के अंदर ज़िम्मेदारी का एहसास – जब इंसान जानता है कि उसके हर अमल को फ़रिश्ते लिख रहे हैं, तो वह गुनाह से बचने की कोशिश करता है।
  3. आख़िरत पर यक़ीन मज़बूत करना – कब्र में सवाल-जवाब और क़यामत के दिन के हालात फ़रिश्तों से जुड़े हुए हैं।
  4. अल्लाह की इबादत में लुत्फ़ – जब इंसान जानता है कि फ़रिश्ते भी लगातार इबादत कर रहे हैं, तो उसका दिल भी अल्लाह की याद में झुकता है।

अगर कोई फ़रिश्तों को न माने?

जो इंसान फ़रिश्तों का इंकार करे, वह इस्लाम से बाहर हो जाता है।
कुरआन में साफ़ तौर पर कहा गया है:

“जो अल्लाह, उसके फ़रिश्तों, उसकी किताबों, उसके रसूलों और आख़िरत के दिन का इनकार करे, वह गुमराह हो गया।”
(कुरआन – सूरह निसा 4:136)


निष्कर्ष

फ़रिश्तों पर ईमान इस्लाम की बुनियाद का हिस्सा है। वे अदृश्य हैं, लेकिन उनका वजूद हक़ है। उनका काम सिर्फ अल्लाह के हुक्म को पूरा करना है। मुसलमान के लिए ज़रूरी है कि वह कुरआन और हदीस में बताए गए मुताबिक़ फ़रिश्तों पर ईमान लाए और इस यक़ीन के साथ ज़िन्दगी गुज़ारे कि उसके हर अच्छे-बुरे काम को फ़रिश्ते लिख रहे हैं और एक दिन अल्लाह के सामने उसका हिसाब होगा।


अल्लाह पर ईमान….


अल्लाह पर ईमान (Allah par Imaan)

भूमिका

इस्लाम का सबसे बड़ा और पहला आधार है – अल्लाह पर ईमान। यानी यह मानना और विश्वास करना कि अल्लाह तआला ही इस पूरी कायनात (संसार) का पैदा करने वाला, पालने वाला और मालिक है। अगर कोई इंसान बाकी सारी इबादतें करे लेकिन उसके दिल में अल्लाह पर सच्चा ईमान न हो, तो उसकी इबादतें कबूल नहीं होतीं। इसलिए इस्लाम की शुरुआत ही ईमान से होती है।


अल्लाह कौन है?

अल्लाह अरबी भाषा का वह नाम है, जिसका अर्थ है – एकमात्र पूज्य, सृष्टि का रचयिता और पालनहार

  • वह न तो पैदा किया गया है और न किसी को उसने जन्म दिया।
  • वह बेनियाज़ है, किसी का मोहताज नहीं।
  • उसकी कोई सूरत, शक्ल या मिसाल नहीं।
  • वही सब कुछ जानता है और सब कुछ करने की ताक़त रखता है।

कुरआन मजीद में अल्लाह का साफ़ तआ’रुफ़ कराया गया है:

“कहो, वह अल्लाह एक है, अल्लाह बेनियाज़ है, न वह जनमा है और न जनमाया गया, और न कोई उसका समकक्ष है।”
(कुरआन – सूरह अल-इख़लास 112:1-4)


अल्लाह पर ईमान का मतलब क्या है?

अल्लाह पर ईमान रखने का अर्थ सिर्फ यह कहना नहीं है कि “अल्लाह है।” बल्कि इसका मतलब है:

  1. अल्लाह की ज़ात (सत्ता) पर यक़ीन – दिल से मानना कि अल्लाह ही मालिक है।
  2. अल्लाह की रबूबियत पर यक़ीन – वही सबका पैदा करने वाला, रोज़ी देने वाला और मौत-ज़िन्दगी देने वाला है।
  3. अल्लाह की उलूहियत पर यक़ीन – इबादत सिर्फ उसी की हो, न किसी मूर्ति की, न किसी इंसान की, न किसी और ताक़त की।
  4. अल्लाह की नामों और सिफ़ात (गुणों) पर यक़ीन – जैसे रहमान (सब पर रहम करने वाला), रहीम (बहुत मेहरबान), ग़फ़ूर (गुनाहों को माफ़ करने वाला), अलीम (सब कुछ जानने वाला)।

अल्लाह पर ईमान क्यों ज़रूरी है?

  1. ज़िन्दगी का मकसद समझने के लिए – जब इंसान अल्लाह को मानता है, तो उसे समझ आता है कि वह बे-मक़सद पैदा नहीं हुआ, बल्कि अल्लाह की इबादत और नेक ज़िन्दगी के लिए पैदा हुआ है।
  2. सुकून और इत्मीनान के लिए – मुश्किल और परेशानियों में इंसान को अल्लाह पर भरोसा होता है कि वही मददगार है।
  3. सही-ग़लत का फ़ैसला करने के लिए – अल्लाह की किताब (कुरआन) और रसूल ﷺ की हिदायत के बिना इंसान सही राह नहीं पकड़ सकता।
  4. आख़िरत की नजात (मुक्ति) के लिए – क़यामत के दिन वही काम आएगा जो अल्लाह की खातिर किया गया हो।

कुरआन में अल्लाह पर ईमान की अहमियत

कुरआन मजीद में बार-बार यह कहा गया है कि ईमान लाओ, ताकि कामयाब हो सको।

  • “जो लोग ईमान लाए और नेक काम किए, उनके लिए बाग़ात (जन्नत) हैं जिनके नीचे नहरें बहती हैं।” (कुरआन – सूरह बक़रा 2:25)
  • “अल्लाह पर और उसके रसूल पर ईमान लाओ और उसी से डरो, ताकि तुम्हें रहमत मिल सके।” (कुरआन – सूरह हदीद 57:28)

पैग़म्बरों की दावत

सभी नबी और रसूल सबसे पहले अपनी कौम को यही दावत देते रहे कि –
“अल्लाह को अपना रब मानो और सिर्फ उसी की इबादत करो।”

  • हज़रत नूह (अ.स.) ने कहा: “ऐ मेरी कौम! अल्लाह की इबादत करो, उसके सिवा तुम्हारा कोई माबूद नहीं।” (कुरआन – सूरह अ़राफ 7:59)
  • हज़रत इब्राहीम (अ.स.) ने अपनी कौम को मूर्तियों से रोककर सिर्फ अल्लाह की तरफ बुलाया।
  • आख़िरी रसूल हज़रत मुहम्मद ﷺ ने भी सबसे पहले यही ऐलान किया: “ला इलाहा इल्लल्लाह” यानी “अल्लाह के सिवा कोई पूज्य नहीं।”

अल्लाह पर ईमान लाने वाले की ज़िन्दगी

जिस इंसान के दिल में अल्लाह पर ईमान होता है, उसकी ज़िन्दगी में यह बदलाव आते हैं:

  1. तवक्कुल (भरोसा) – हर हाल में अल्लाह पर भरोसा करता है।
  2. तक़वा (परहेज़गारी) – गुनाह से बचने और नेक काम करने की कोशिश करता है।
  3. शुक्र (आभार) – नेमत मिलने पर शुक्र अदा करता है।
  4. सब्र (धैर्य) – मुसीबत आने पर सब्र करता है।
  5. इन्साफ़ और रहमदिली – दूसरों के साथ अच्छा बर्ताव करता है, क्योंकि जानता है कि अल्लाह सब देख रहा है।

अल्लाह पर ईमान न रखने वालों का अंजाम

कुरआन कहता है कि जो लोग अल्लाह को नहीं मानते या उसके साथ दूसरों को साझी ठहराते हैं (शिर्क करते हैं), उनके आमाल चाहे कितने भी अच्छे क्यों न हों, आख़िरत में उन्हें नजात नहीं मिलेगी।

“निश्चय ही अल्लाह उसके गुनाह को नहीं माफ़ करेगा कि उसके साथ किसी को शरीक ठहराया जाए। इसके अलावा जिस गुनाह को चाहे माफ़ कर देगा।”
(कुरआन – सूरह निसा 4:48)


निष्कर्ष

अल्लाह पर ईमान इस्लाम का पहला और सबसे अहम आधार है। यही वह रोशनी है जो इंसान की ज़िन्दगी को सही राह दिखाती है। जब इंसान अल्लाह को एकमात्र मालिक मानकर उसकी इबादत करता है, तभी उसकी ज़िन्दगी मक़सद वाली और परिपूर्ण बनती है।

👉 इसलिए हर मुसलमान का फ़र्ज़ है कि वह अपने दिल, अपनी ज़ुबान और अपने अमल से अल्लाह पर सच्चा ईमान लाए और उसी के बताए रास्ते पर चले।