हज़रत हूद (अ.स.).


हज़रत हूद (अलैहिस्सलाम) – अहंकार के खिलाफ़ अल्लाह का पैग़ाम

प्रस्तावना

इस्लामी इतिहास में जिन नबियों का ज़िक्र बार-बार होता है, उनमें से एक हैं हज़रत हूद (अलैहिस्सलाम)। अल्लाह तआला ने उन्हें क़ौम-ए-आद की हिदायत के लिए भेजा। उनकी क़ौम ताक़तवर, दौलतमंद और अहंकारी थी, लेकिन अल्लाह को भूल चुकी थी। क़ुरआन करीम में कई जगह हज़रत हूद (अ.स.) और उनकी क़ौम का तफ़सीली ज़िक्र मिलता है।


हज़रत हूद (अ.स.) का वंश

रिवायतों के मुताबिक़, हज़रत हूद (अ.स.) का नसब (वंश) नूह (अ.स.) के बेटे साम से मिलता है। इस तरह वे नूह (अ.स.) की औलाद में से थे।


क़ौम-ए-आद का हाल

हज़रत हूद (अ.स.) की क़ौम का नाम था आद। यह लोग अरब के यमन इलाके में रहते थे, जिसे अहक़ाफ़ (रेत के टीलों वाला इलाक़ा) कहा जाता था।

क़ौम-ए-आद की ख़ासियतें:

  • ये लोग जिस्मानी तौर पर बहुत मज़बूत और लंबे-चौड़े थे।
  • उन्होंने ऊँचे-ऊँचे महल और क़िले बनाए।
  • उनकी खेती-बाड़ी और बाग़ात बहुत आलीशान थे।
  • वे अपनी ताक़त और दौलत पर घमंड करते थे।

लेकिन इनके अंदर घमंड और ज़ुल्म बढ़ गया। वे अल्लाह की इबादत छोड़कर बुत-परस्ती करने लगे। ग़रीबों और कमज़ोरों को सताते थे।


नबूवत और दावत

अल्लाह तआला ने हूद (अ.स.) को नबूवत देकर आद की तरफ़ भेजा। उन्होंने अपनी क़ौम से कहा:

  • “ऐ मेरी क़ौम! अल्लाह की इबादत करो, उसके सिवा तुम्हारा कोई माबूद नहीं।”
  • “तुम्हें झूठ बोलने और घमंड करने की ज़रूरत नहीं।”
  • “अल्लाह से तौबा करो और उसकी रहमत तलाश करो।”

हूद (अ.स.) ने अपनी क़ौम को बार-बार समझाया कि ताक़त और दौलत पर घमंड करना बेकार है। असली ताक़त अल्लाह की है।


क़ौम की जिद और जवाब

लेकिन क़ौम-ए-आद ने हूद (अ.स.) की बात मानने से इंकार कर दिया। उन्होंने कहा:

  • “तुम हमारी तरह इंसान हो, तुम्हें क्यों माना जाए?”
  • “अगर अल्लाह चाहता तो कोई फ़रिश्ता भेजता।”
  • “हम तो अपने बाप-दादा के तरीक़े पर हैं।”
  • “तुम हमें डराने आए हो कि अजाब आएगा? हम तो मानते ही नहीं।”

उन्होंने हूद (अ.स.) का मज़ाक उड़ाया और कहा कि शायद तुम पर किसी बुत का असर हो गया है।


हूद (अ.स.) का सब्र

हूद (अ.स.) ने सब्र और हिकमत से जवाब दिया:

  • “मैं कोई मज़दूरी नहीं माँगता, मेरा अज्र (इनाम) सिर्फ़ अल्लाह के पास है।”
  • “मैं वही पैग़ाम पहुँचा रहा हूँ जो अल्लाह ने मुझे दिया है।”
  • “अगर तुम न मानोगे तो अल्लाह का अजाब तुम्हें पकड़ लेगा।”

अजाब की चेतावनी

हूद (अ.स.) ने बार-बार अपनी क़ौम को आगाह किया कि अल्लाह का अजाब नज़दीक है। उन्होंने कहा कि अगर तुम तौबा कर लो तो अल्लाह तुम्हें और दौलत देगा, बारिश और रहमत बरसाएगा।

लेकिन क़ौम-ए-आद ने और भी घमंड किया और कहा:

  • “कौन है जो हमसे ताक़तवर हो?”

क़ौम-ए-आद पर अजाब

जब क़ौम ने न मानने की ज़िद कर ली तो अल्लाह का अजाब आया।

पहले उनकी ज़मीन पर सख़्त क़हत (सूखा) पड़ा। कई साल तक बारिश बंद हो गई। उनके बाग़ात सूख गए।

फिर एक दिन काले बादल दिखाई दिए। उन्होंने समझा कि अब बारिश होगी। लेकिन वह बादल रहमत का नहीं, अजाब का था।

अल्लाह ने उस बादल से तेज़ आंधी और तूफ़ान भेजा। यह आँधी सात रात और आठ दिन लगातार चलती रही।

क़ुरआन में आता है:

“वह हवा उनको ऐसे गिराती थी जैसे वे खोखले खजूर के तनों की तरह हो गए हों।”
(सूरह हाक़्क़ा 7)

पूरी क़ौम-ए-आद तबाह हो गई। उनके महल, बाग़ात और सब कुछ बर्बाद हो गया।


हूद (अ.स.) और उनके साथी सुरक्षित

अल्लाह ने हूद (अ.स.) और उनके साथ के ईमान वालों को इस अजाब से बचा लिया। वे लोग हिजरत करके दूसरी जगह चले गए और अल्लाह की इबादत में लगे रहे।


क़ुरआन में ज़िक्र

हज़रत हूद (अ.स.) का ज़िक्र क़ुरआन की कई सूरहों में आया है:

  • सूरह हूद
  • सूरह अ’राफ़
  • सूरह हाक़्क़ा
  • सूरह अहक़ाफ़
  • सूरह फज्र

हर जगह उनकी दावत, क़ौम की ज़िद और अजाब का ज़िक्र मिलता है।


सबक़ और सीख

हज़रत हूद (अ.स.) और उनकी क़ौम की कहानी से हमें कई सबक़ मिलते हैं:

  1. तौहीद (एक अल्लाह की इबादत) – ताक़त और दौलत इंसान को घमंड में डाल सकती है, लेकिन असली मालिक अल्लाह है।
  2. तकब्बुर की बुराई – क़ौम-ए-आद ने अपनी ताक़त पर घमंड किया और अल्लाह को भूल गए, नतीजा तबाही था।
  3. नबी की इज्ज़त – जो लोग नबियों का मज़ाक उड़ाते हैं, उनका अंजाम हमेशा बुरा होता है।
  4. सब्र और हिकमत – हूद (अ.स.) ने सब्र से अपनी क़ौम को दावत दी, यह दाईयों (इस्लामी दावत देने वालों) के लिए मिसाल है।
  5. अल्लाह की रहमत और अजाब – अल्लाह रहमत वाला भी है, अगर इंसान तौबा करे तो माफ़ करता है, लेकिन अगर ज़िद करे तो अजाब भेजता है।

हूद (अ.स.) की वफ़ात

इतिहासकार बताते हैं कि हूद (अ.स.) की वफ़ात यमन के इलाके में हुई। कुछ कहते हैं कि उनकी क़ब्र हज़रत आयुब (अ.स.) के क़रीब है, जबकि कुछ राय है कि उनकी क़ब्र हिजाज़ में है। सही इल्म सिर्फ़ अल्लाह को है।


निष्कर्ष

हज़रत हूद (अलैहिस्सलाम) की कहानी इंसानियत के लिए बड़ा सबक़ है। उनकी क़ौम ताक़तवर और दौलतमंद थी, लेकिन अल्लाह की नाफ़रमानी और घमंड की वजह से तबाह हो गई।

हूद (अ.स.) की दावत हमें सिखाती है कि अल्लाह की इबादत ही असली रास्ता है। घमंड और शिर्क इंसान को बर्बादी की तरफ़ ले जाते हैं।

क़ौम-ए-आद का अंजाम इस बात की गवाही है कि चाहे कितनी भी ताक़त और दौलत हो, अगर इंसान अल्लाह को भूल जाए तो उसका अंजाम तबाही है।