हज़रत सालेह (अलैहिस्सलाम) – ऊँटनी का मौजिज़ा और क़ौम-ए-समूद की तबाही
प्रस्तावना
इस्लामी इतिहास में कई नबियों को उनकी क़ौम के लिए ख़ास मौजिज़ा (चमत्कार) दिए गए। उन्हीं में से एक हैं हज़रत सालेह (अलैहिस्सलाम)। अल्लाह तआला ने उन्हें क़ौम-ए-समूद की हिदायत के लिए भेजा। उनकी क़ौम ताक़तवर और ख़ुशहाल थी, लेकिन गुमराही और घमंड में डूबी हुई थी। हज़रत सालेह (अ.स.) की कहानी क़ुरआन करीम में कई बार बयान हुई है और इसमें आज की इंसानियत के लिए भी बड़े सबक़ छुपे हैं।
हज़रत सालेह (अ.स.) का वंश
रिवायतों के मुताबिक़, सालेह (अ.स.) का नसब (वंश) हज़रत नूह (अ.स.) की औलाद से मिलता है। वे अरब के इलाक़े में पैदा हुए और उसी ज़मीन पर अल्लाह ने उन्हें नबूवत दी।
क़ौम-ए-समूद का इलाक़ा
क़ौम-ए-समूद का इलाक़ा आज के सऊदी अरब और जॉर्डन के बीच था, जिसे “हिज्र” कहा जाता है। आज भी वहां उनके घरों और पहाड़ों में बनी इमारतों के निशान मौजूद हैं, जिन्हें लोग “मदाइने-सालेह” कहते हैं।
क़ौम-ए-समूद की ख़ासियतें:
- वे पहाड़ों को काटकर घर और महल बनाते थे।
- खेती-बाड़ी और बाग़ात बहुत थी।
- वे दौलत और ताक़त में मशहूर थे।
- लेकिन अहंकार और गुमराही में डूब चुके थे।
शिर्क और गुमराही
क़ौम-ए-समूद अल्लाह को छोड़कर बुतों की पूजा करने लगी। वे अपनी ताक़त पर घमंड करते और ग़रीबों को सताते थे। उन्होंने नफ़्स की गुलामी अपनाई और नबियों की तालीम से मुँह मोड़ लिया।
नबूवत और दावत
अल्लाह तआला ने सालेह (अ.स.) को उनकी हिदायत के लिए भेजा। उन्होंने अपनी क़ौम से कहा:
- “ऐ मेरी क़ौम! सिर्फ़ अल्लाह की इबादत करो। उसी ने तुम्हें पैदा किया और उसी ने यह ज़मीन बसाई।”
- “अल्लाह से तौबा करो, वही रहमत देने वाला है।”
- “तुम्हारे पास अब उसी की तरफ़ से नसीहत आई है।”
सालेह (अ.स.) ने उन्हें शिर्क और गुनाह छोड़ने और तौहीद अपनाने की दावत दी।
क़ौम की ज़िद और चुनौती
क़ौम-ए-समूद ने कहा:
- “सालेह! हम तुमसे बड़ी उम्मीदें रखते थे, लेकिन तुमने हमें बाप-दादा के तरीक़े से हटाना चाहा।”
- “अगर तुम सच्चे नबी हो तो कोई चमत्कार दिखाओ।”
उन्होंने मांग की कि पहाड़ से एक जिंदा ऊँटनी निकल आए।
मौजिज़ा – ऊँटनी का ज़ुहूर
अल्लाह ने सालेह (अ.स.) की दुआ क़ुबूल की। पहाड़ फटा और उसमें से एक बड़ी ऊँटनी ज़िन्दा निकल आई।
सालेह (अ.स.) ने कहा:
- “यह अल्लाह की तरफ़ से निशानी है। इसे छोड़ दो, यह अल्लाह की ऊँटनी है।”
- “इसे अल्लाह की ज़मीन पर चरने दो।”
- “इसे कोई तकलीफ़ मत देना, वरना अल्लाह का अजाब आ जाएगा।”
ऊँटनी का मौजिज़ा पूरी क़ौम ने देखा। वह ऊँटनी बारी-बारी से एक दिन पूरा पानी पीती और दूसरे दिन पूरी क़ौम पानी इस्तेमाल करती। यह अल्लाह का करिश्मा था।
क़ौम का इंकार
मौजिज़ा देखने के बावजूद क़ौम-ए-समूद ने ईमान नहीं लाया। उन्होंने कहा:
- “यह तो जादू है।”
- “हम इस ऊँटनी की वजह से अपनी मर्ज़ी नहीं छोड़ेंगे।”
आख़िरकार उन्होंने साज़िश करके ऊँटनी को मार डाला।
ऊँटनी की हत्या और सालेह (अ.स.) की चेतावनी
जब उन्होंने ऊँटनी को क़त्ल कर दिया तो सालेह (अ.स.) बहुत ग़ुस्से और ग़म में बोले:
- “तुम्हें अब अल्लाह का अजाब पकड़ेगा।”
- “तीन दिन और मौलत है, उसके बाद अजाब आएगा।”
क़ौम-ए-समूद पर अजाब
तीन दिन पूरे होने के बाद आसमान से एक सख़्त चीख़ और ज़ोरदार ज़लज़ला (भूकंप) आया।
क़ुरआन में आया है:
“फिर उन्हें एक जोरदार आवाज़ ने पकड़ लिया, और वे अपने घरों में पड़े लाशों की तरह रह गए।”
(सूरह हूद 67)
पूरी क़ौम तबाह हो गई। उनके आलीशान घर और महल वीरान हो गए।
सालेह (अ.स.) और ईमान वाले सुरक्षित
अल्लाह ने सालेह (अ.स.) और उनके मानने वाले ईमान वालों को बचा लिया। वे लोग उस तबाह हुई क़ौम को छोड़कर आगे बढ़ गए।
क़ुरआन में ज़िक्र
हज़रत सालेह (अ.स.) और क़ौम-ए-समूद का ज़िक्र क़ुरआन की कई सूरहों में आया है:
- सूरह हूद
- सूरह अ’राफ़
- सूरह शुअरा
- सूरह क़मर
- सूरह शम्स
हर जगह अल्लाह ने ऊँटनी के मौजिज़े और क़ौम-ए-समूद की तबाही को इंसानियत के लिए सबक़ के तौर पर बयान किया।
सबक़ और सीख
- अल्लाह की निशानियों का इंकार मत करो – क़ौम-ए-समूद ने मौजिज़ा देखने के बावजूद इंकार किया और तबाह हो गई।
- तकब्बुर और घमंड से बचो – दौलत और ताक़त पर घमंड इंसान को बर्बादी की तरफ़ ले जाता है।
- नबी की तालीम मानो – नबियों की नसीहत इंसानियत के लिए रहमत है। उनका इंकार करना अज़ाब को बुलाना है।
- अल्लाह की कुदरत पर भरोसा करो – पहाड़ से ऊँटनी का निकलना बताता है कि अल्लाह हर चीज़ पर क़ादिर है।
- गुनाह की साज़िश का अंजाम – ऊँटनी को क़त्ल करने वाले कुछ लोग थे, लेकिन अजाब पूरी क़ौम पर आया। इससे सबक़ मिलता है कि गुनाह की साज़िश को सहारा देना भी बर्बादी का रास्ता है।
वफ़ात
इतिहासकार बताते हैं कि हज़रत सालेह (अ.स.) की वफ़ात हिजाज़ (सऊदी अरब) के इलाके में हुई। उनकी सही क़ब्र कहाँ है, इसका इल्म सिर्फ़ अल्लाह को है।
निष्कर्ष
हज़रत सालेह (अलैहिस्सलाम) की ज़िन्दगी हमें तौहीद, सब्र और अल्लाह की निशानियों का सम्मान करना सिखाती है। उनकी क़ौम ताक़तवर और दौलतमंद थी, लेकिन अहंकार और नाफ़रमानी ने उन्हें तबाह कर दिया।
क़ौम-ए-समूद की कहानी क़ुरआन में बार-बार इसलिए आई है ताकि इंसानियत सबक़ ले और समझे कि अल्लाह की नाफ़रमानी करने वाली क़ौमें कभी बच नहीं सकतीं।