हज़रत सालेह (अलैहिस्सलाम).


हज़रत सालेह (अलैहिस्सलाम) – ऊँटनी का मौजिज़ा और क़ौम-ए-समूद की तबाही

प्रस्तावना

इस्लामी इतिहास में कई नबियों को उनकी क़ौम के लिए ख़ास मौजिज़ा (चमत्कार) दिए गए। उन्हीं में से एक हैं हज़रत सालेह (अलैहिस्सलाम)। अल्लाह तआला ने उन्हें क़ौम-ए-समूद की हिदायत के लिए भेजा। उनकी क़ौम ताक़तवर और ख़ुशहाल थी, लेकिन गुमराही और घमंड में डूबी हुई थी। हज़रत सालेह (अ.स.) की कहानी क़ुरआन करीम में कई बार बयान हुई है और इसमें आज की इंसानियत के लिए भी बड़े सबक़ छुपे हैं।


हज़रत सालेह (अ.स.) का वंश

रिवायतों के मुताबिक़, सालेह (अ.स.) का नसब (वंश) हज़रत नूह (अ.स.) की औलाद से मिलता है। वे अरब के इलाक़े में पैदा हुए और उसी ज़मीन पर अल्लाह ने उन्हें नबूवत दी।


क़ौम-ए-समूद का इलाक़ा

क़ौम-ए-समूद का इलाक़ा आज के सऊदी अरब और जॉर्डन के बीच था, जिसे “हिज्र” कहा जाता है। आज भी वहां उनके घरों और पहाड़ों में बनी इमारतों के निशान मौजूद हैं, जिन्हें लोग “मदाइने-सालेह” कहते हैं।

क़ौम-ए-समूद की ख़ासियतें:

  • वे पहाड़ों को काटकर घर और महल बनाते थे।
  • खेती-बाड़ी और बाग़ात बहुत थी।
  • वे दौलत और ताक़त में मशहूर थे।
  • लेकिन अहंकार और गुमराही में डूब चुके थे।

शिर्क और गुमराही

क़ौम-ए-समूद अल्लाह को छोड़कर बुतों की पूजा करने लगी। वे अपनी ताक़त पर घमंड करते और ग़रीबों को सताते थे। उन्होंने नफ़्स की गुलामी अपनाई और नबियों की तालीम से मुँह मोड़ लिया।


नबूवत और दावत

अल्लाह तआला ने सालेह (अ.स.) को उनकी हिदायत के लिए भेजा। उन्होंने अपनी क़ौम से कहा:

  • “ऐ मेरी क़ौम! सिर्फ़ अल्लाह की इबादत करो। उसी ने तुम्हें पैदा किया और उसी ने यह ज़मीन बसाई।”
  • “अल्लाह से तौबा करो, वही रहमत देने वाला है।”
  • “तुम्हारे पास अब उसी की तरफ़ से नसीहत आई है।”

सालेह (अ.स.) ने उन्हें शिर्क और गुनाह छोड़ने और तौहीद अपनाने की दावत दी।


क़ौम की ज़िद और चुनौती

क़ौम-ए-समूद ने कहा:

  • “सालेह! हम तुमसे बड़ी उम्मीदें रखते थे, लेकिन तुमने हमें बाप-दादा के तरीक़े से हटाना चाहा।”
  • “अगर तुम सच्चे नबी हो तो कोई चमत्कार दिखाओ।”

उन्होंने मांग की कि पहाड़ से एक जिंदा ऊँटनी निकल आए।


मौजिज़ा – ऊँटनी का ज़ुहूर

अल्लाह ने सालेह (अ.स.) की दुआ क़ुबूल की। पहाड़ फटा और उसमें से एक बड़ी ऊँटनी ज़िन्दा निकल आई।

सालेह (अ.स.) ने कहा:

  • “यह अल्लाह की तरफ़ से निशानी है। इसे छोड़ दो, यह अल्लाह की ऊँटनी है।”
  • “इसे अल्लाह की ज़मीन पर चरने दो।”
  • “इसे कोई तकलीफ़ मत देना, वरना अल्लाह का अजाब आ जाएगा।”

ऊँटनी का मौजिज़ा पूरी क़ौम ने देखा। वह ऊँटनी बारी-बारी से एक दिन पूरा पानी पीती और दूसरे दिन पूरी क़ौम पानी इस्तेमाल करती। यह अल्लाह का करिश्मा था।


क़ौम का इंकार

मौजिज़ा देखने के बावजूद क़ौम-ए-समूद ने ईमान नहीं लाया। उन्होंने कहा:

  • “यह तो जादू है।”
  • “हम इस ऊँटनी की वजह से अपनी मर्ज़ी नहीं छोड़ेंगे।”

आख़िरकार उन्होंने साज़िश करके ऊँटनी को मार डाला।


ऊँटनी की हत्या और सालेह (अ.स.) की चेतावनी

जब उन्होंने ऊँटनी को क़त्ल कर दिया तो सालेह (अ.स.) बहुत ग़ुस्से और ग़म में बोले:

  • “तुम्हें अब अल्लाह का अजाब पकड़ेगा।”
  • “तीन दिन और मौलत है, उसके बाद अजाब आएगा।”

क़ौम-ए-समूद पर अजाब

तीन दिन पूरे होने के बाद आसमान से एक सख़्त चीख़ और ज़ोरदार ज़लज़ला (भूकंप) आया।

क़ुरआन में आया है:

“फिर उन्हें एक जोरदार आवाज़ ने पकड़ लिया, और वे अपने घरों में पड़े लाशों की तरह रह गए।”
(सूरह हूद 67)

पूरी क़ौम तबाह हो गई। उनके आलीशान घर और महल वीरान हो गए।


सालेह (अ.स.) और ईमान वाले सुरक्षित

अल्लाह ने सालेह (अ.स.) और उनके मानने वाले ईमान वालों को बचा लिया। वे लोग उस तबाह हुई क़ौम को छोड़कर आगे बढ़ गए।


क़ुरआन में ज़िक्र

हज़रत सालेह (अ.स.) और क़ौम-ए-समूद का ज़िक्र क़ुरआन की कई सूरहों में आया है:

  • सूरह हूद
  • सूरह अ’राफ़
  • सूरह शुअरा
  • सूरह क़मर
  • सूरह शम्स

हर जगह अल्लाह ने ऊँटनी के मौजिज़े और क़ौम-ए-समूद की तबाही को इंसानियत के लिए सबक़ के तौर पर बयान किया।


सबक़ और सीख

  1. अल्लाह की निशानियों का इंकार मत करो – क़ौम-ए-समूद ने मौजिज़ा देखने के बावजूद इंकार किया और तबाह हो गई।
  2. तकब्बुर और घमंड से बचो – दौलत और ताक़त पर घमंड इंसान को बर्बादी की तरफ़ ले जाता है।
  3. नबी की तालीम मानो – नबियों की नसीहत इंसानियत के लिए रहमत है। उनका इंकार करना अज़ाब को बुलाना है।
  4. अल्लाह की कुदरत पर भरोसा करो – पहाड़ से ऊँटनी का निकलना बताता है कि अल्लाह हर चीज़ पर क़ादिर है।
  5. गुनाह की साज़िश का अंजाम – ऊँटनी को क़त्ल करने वाले कुछ लोग थे, लेकिन अजाब पूरी क़ौम पर आया। इससे सबक़ मिलता है कि गुनाह की साज़िश को सहारा देना भी बर्बादी का रास्ता है।

वफ़ात

इतिहासकार बताते हैं कि हज़रत सालेह (अ.स.) की वफ़ात हिजाज़ (सऊदी अरब) के इलाके में हुई। उनकी सही क़ब्र कहाँ है, इसका इल्म सिर्फ़ अल्लाह को है।


निष्कर्ष

हज़रत सालेह (अलैहिस्सलाम) की ज़िन्दगी हमें तौहीद, सब्र और अल्लाह की निशानियों का सम्मान करना सिखाती है। उनकी क़ौम ताक़तवर और दौलतमंद थी, लेकिन अहंकार और नाफ़रमानी ने उन्हें तबाह कर दिया।

क़ौम-ए-समूद की कहानी क़ुरआन में बार-बार इसलिए आई है ताकि इंसानियत सबक़ ले और समझे कि अल्लाह की नाफ़रमानी करने वाली क़ौमें कभी बच नहीं सकतीं।


हज़रत हूद (अ.स.).


हज़रत हूद (अलैहिस्सलाम) – अहंकार के खिलाफ़ अल्लाह का पैग़ाम

प्रस्तावना

इस्लामी इतिहास में जिन नबियों का ज़िक्र बार-बार होता है, उनमें से एक हैं हज़रत हूद (अलैहिस्सलाम)। अल्लाह तआला ने उन्हें क़ौम-ए-आद की हिदायत के लिए भेजा। उनकी क़ौम ताक़तवर, दौलतमंद और अहंकारी थी, लेकिन अल्लाह को भूल चुकी थी। क़ुरआन करीम में कई जगह हज़रत हूद (अ.स.) और उनकी क़ौम का तफ़सीली ज़िक्र मिलता है।


हज़रत हूद (अ.स.) का वंश

रिवायतों के मुताबिक़, हज़रत हूद (अ.स.) का नसब (वंश) नूह (अ.स.) के बेटे साम से मिलता है। इस तरह वे नूह (अ.स.) की औलाद में से थे।


क़ौम-ए-आद का हाल

हज़रत हूद (अ.स.) की क़ौम का नाम था आद। यह लोग अरब के यमन इलाके में रहते थे, जिसे अहक़ाफ़ (रेत के टीलों वाला इलाक़ा) कहा जाता था।

क़ौम-ए-आद की ख़ासियतें:

  • ये लोग जिस्मानी तौर पर बहुत मज़बूत और लंबे-चौड़े थे।
  • उन्होंने ऊँचे-ऊँचे महल और क़िले बनाए।
  • उनकी खेती-बाड़ी और बाग़ात बहुत आलीशान थे।
  • वे अपनी ताक़त और दौलत पर घमंड करते थे।

लेकिन इनके अंदर घमंड और ज़ुल्म बढ़ गया। वे अल्लाह की इबादत छोड़कर बुत-परस्ती करने लगे। ग़रीबों और कमज़ोरों को सताते थे।


नबूवत और दावत

अल्लाह तआला ने हूद (अ.स.) को नबूवत देकर आद की तरफ़ भेजा। उन्होंने अपनी क़ौम से कहा:

  • “ऐ मेरी क़ौम! अल्लाह की इबादत करो, उसके सिवा तुम्हारा कोई माबूद नहीं।”
  • “तुम्हें झूठ बोलने और घमंड करने की ज़रूरत नहीं।”
  • “अल्लाह से तौबा करो और उसकी रहमत तलाश करो।”

हूद (अ.स.) ने अपनी क़ौम को बार-बार समझाया कि ताक़त और दौलत पर घमंड करना बेकार है। असली ताक़त अल्लाह की है।


क़ौम की जिद और जवाब

लेकिन क़ौम-ए-आद ने हूद (अ.स.) की बात मानने से इंकार कर दिया। उन्होंने कहा:

  • “तुम हमारी तरह इंसान हो, तुम्हें क्यों माना जाए?”
  • “अगर अल्लाह चाहता तो कोई फ़रिश्ता भेजता।”
  • “हम तो अपने बाप-दादा के तरीक़े पर हैं।”
  • “तुम हमें डराने आए हो कि अजाब आएगा? हम तो मानते ही नहीं।”

उन्होंने हूद (अ.स.) का मज़ाक उड़ाया और कहा कि शायद तुम पर किसी बुत का असर हो गया है।


हूद (अ.स.) का सब्र

हूद (अ.स.) ने सब्र और हिकमत से जवाब दिया:

  • “मैं कोई मज़दूरी नहीं माँगता, मेरा अज्र (इनाम) सिर्फ़ अल्लाह के पास है।”
  • “मैं वही पैग़ाम पहुँचा रहा हूँ जो अल्लाह ने मुझे दिया है।”
  • “अगर तुम न मानोगे तो अल्लाह का अजाब तुम्हें पकड़ लेगा।”

अजाब की चेतावनी

हूद (अ.स.) ने बार-बार अपनी क़ौम को आगाह किया कि अल्लाह का अजाब नज़दीक है। उन्होंने कहा कि अगर तुम तौबा कर लो तो अल्लाह तुम्हें और दौलत देगा, बारिश और रहमत बरसाएगा।

लेकिन क़ौम-ए-आद ने और भी घमंड किया और कहा:

  • “कौन है जो हमसे ताक़तवर हो?”

क़ौम-ए-आद पर अजाब

जब क़ौम ने न मानने की ज़िद कर ली तो अल्लाह का अजाब आया।

पहले उनकी ज़मीन पर सख़्त क़हत (सूखा) पड़ा। कई साल तक बारिश बंद हो गई। उनके बाग़ात सूख गए।

फिर एक दिन काले बादल दिखाई दिए। उन्होंने समझा कि अब बारिश होगी। लेकिन वह बादल रहमत का नहीं, अजाब का था।

अल्लाह ने उस बादल से तेज़ आंधी और तूफ़ान भेजा। यह आँधी सात रात और आठ दिन लगातार चलती रही।

क़ुरआन में आता है:

“वह हवा उनको ऐसे गिराती थी जैसे वे खोखले खजूर के तनों की तरह हो गए हों।”
(सूरह हाक़्क़ा 7)

पूरी क़ौम-ए-आद तबाह हो गई। उनके महल, बाग़ात और सब कुछ बर्बाद हो गया।


हूद (अ.स.) और उनके साथी सुरक्षित

अल्लाह ने हूद (अ.स.) और उनके साथ के ईमान वालों को इस अजाब से बचा लिया। वे लोग हिजरत करके दूसरी जगह चले गए और अल्लाह की इबादत में लगे रहे।


क़ुरआन में ज़िक्र

हज़रत हूद (अ.स.) का ज़िक्र क़ुरआन की कई सूरहों में आया है:

  • सूरह हूद
  • सूरह अ’राफ़
  • सूरह हाक़्क़ा
  • सूरह अहक़ाफ़
  • सूरह फज्र

हर जगह उनकी दावत, क़ौम की ज़िद और अजाब का ज़िक्र मिलता है।


सबक़ और सीख

हज़रत हूद (अ.स.) और उनकी क़ौम की कहानी से हमें कई सबक़ मिलते हैं:

  1. तौहीद (एक अल्लाह की इबादत) – ताक़त और दौलत इंसान को घमंड में डाल सकती है, लेकिन असली मालिक अल्लाह है।
  2. तकब्बुर की बुराई – क़ौम-ए-आद ने अपनी ताक़त पर घमंड किया और अल्लाह को भूल गए, नतीजा तबाही था।
  3. नबी की इज्ज़त – जो लोग नबियों का मज़ाक उड़ाते हैं, उनका अंजाम हमेशा बुरा होता है।
  4. सब्र और हिकमत – हूद (अ.स.) ने सब्र से अपनी क़ौम को दावत दी, यह दाईयों (इस्लामी दावत देने वालों) के लिए मिसाल है।
  5. अल्लाह की रहमत और अजाब – अल्लाह रहमत वाला भी है, अगर इंसान तौबा करे तो माफ़ करता है, लेकिन अगर ज़िद करे तो अजाब भेजता है।

हूद (अ.स.) की वफ़ात

इतिहासकार बताते हैं कि हूद (अ.स.) की वफ़ात यमन के इलाके में हुई। कुछ कहते हैं कि उनकी क़ब्र हज़रत आयुब (अ.स.) के क़रीब है, जबकि कुछ राय है कि उनकी क़ब्र हिजाज़ में है। सही इल्म सिर्फ़ अल्लाह को है।


निष्कर्ष

हज़रत हूद (अलैहिस्सलाम) की कहानी इंसानियत के लिए बड़ा सबक़ है। उनकी क़ौम ताक़तवर और दौलतमंद थी, लेकिन अल्लाह की नाफ़रमानी और घमंड की वजह से तबाह हो गई।

हूद (अ.स.) की दावत हमें सिखाती है कि अल्लाह की इबादत ही असली रास्ता है। घमंड और शिर्क इंसान को बर्बादी की तरफ़ ले जाते हैं।

क़ौम-ए-आद का अंजाम इस बात की गवाही है कि चाहे कितनी भी ताक़त और दौलत हो, अगर इंसान अल्लाह को भूल जाए तो उसका अंजाम तबाही है।


हज़रत नूह (अ.स.).


हज़रत नूह (अलैहिस्सलाम) – सब्र और दावत के पैग़म्बर

प्रस्तावना

इस्लामी इतिहास में कुछ नबियों का ज़िक्र बार-बार आता है। इनमें से एक हैं हज़रत नूह (अलैहिस्सलाम)। क़ुरआन करीम में उनकी कहानी विस्तार से बयान की गई है। उन्हें “उलुल-अज़्म” यानी बड़े अज़्म (दृढ़ता) वाले नबियों में से माना गया है। उनकी ज़िन्दगी सब्र, दावत, और अल्लाह पर भरोसे की बेहतरीन मिसाल है।


नूह (अ.स.) का वंश और जन्म

हज़रत नूह (अ.स.) का ताल्लुक़ हज़रत इदरीस (अ.स.) की नस्ल से था। वे आदम (अ.स.) की औलाद में से थे और उनकी पैदाइश आदम (अ.स.) के बाद कई पीढ़ियों में हुई।

उनका नाम “नूह” इस वजह से मशहूर है कि वे अल्लाह से दुआओं और तौबा में बहुत रोया करते थे।


पैग़म्बरी का आग़ाज़

उस ज़माने में लोग धीरे-धीरे अल्लाह की इबादत छोड़कर बुत-परस्ती (मूर्तिपूजा) करने लगे थे। उन्होंने इंसानी औलाद में पैदा हुए नेक लोगों की याद में मूर्तियाँ बना लीं और फिर उनकी इबादत शुरू कर दी।

अल्लाह तआला ने नूह (अ.स.) को नबूवत देकर भेजा। उन्होंने अपनी क़ौम को बुलाया:

  • सिर्फ़ अल्लाह की इबादत करो।
  • किसी को उसका शरीक मत ठहराओ।
  • गुनाह छोड़ो और तौबा करो।
  • अल्लाह की रहमत और मग़फ़िरत हासिल करो।

दावत का सफ़र – 950 साल का सब्र

क़ुरआन में आया है कि नूह (अ.स.) ने अपनी क़ौम को 950 साल तक दावत दी। दिन-रात, खुले और छुपे, हर तरीक़े से उन्होंने लोगों को समझाया।

लेकिन उनकी क़ौम ने उनका मज़ाक उड़ाया, गालियाँ दीं, पत्थर मारे और उन पर ज़ुल्म ढाया। इसके बावजूद नूह (अ.स.) सब्र करते रहे और अपनी दावत को जारी रखा।

उनकी क़ौम ने कहा:

  • “तुम तो हमारी तरह इंसान हो।”
  • “अगर अल्लाह चाहता तो फ़रिश्ता भेजता।”
  • “हमने तुम्हें झूठा पाया।”

नाव (सफ़ीना) बनाने का हुक्म

जब क़ौम ने न मानने की ज़िद पकड़ ली तो अल्लाह तआला ने नूह (अ.स.) से फ़रमाया कि अब उनकी दावत का काम पूरा हुआ। अब उनकी क़ौम पर अजाब (सज़ा) आएगा।

अल्लाह ने हुक्म दिया:

“हमारी देख-रेख और हुक्म से एक जहाज़ (सफ़ीना) बनाओ।”
(क़ुरआन, सूरह हूद 37)

नूह (अ.स.) ने लकड़ियों से बड़ी नाव बनानी शुरू की। लोग मज़ाक उड़ाते और कहते: “पहाड़ पर नाव क्यों बना रहे हो?” लेकिन नूह (अ.स.) ने सब्र से काम लिया।


तुफ़ान-ए-नूह

जब जहाज़ तैयार हो गया, अल्लाह ने नूह (अ.स.) को हुक्म दिया कि अपने मानने वालों और हर जानवर के नर-मादा जोड़े को उसमें बिठा लो।

फिर अल्लाह का अजाब आया:

  • आसमान से पानी बरसा।
  • ज़मीन से चश्मे फूट पड़े।
  • हर तरफ़ पानी ही पानी हो गया।

इतना बड़ा तूफ़ान आया कि पूरी धरती पानी से भर गई। सिर्फ़ वे लोग बचे जो नूह (अ.स.) की नाव में सवार थे।


नूह (अ.स.) का बेटा

नूह (अ.स.) का एक बेटा जहाज़ में सवार नहीं हुआ। उसने कहा: “मैं पहाड़ पर चढ़कर बच जाऊँगा।” नूह (अ.स.) ने उसे पुकारा, लेकिन उसने इंकार कर दिया और लहरों में डूब गया।

इससे यह सबक़ मिलता है कि नबी का बेटा होना भी ईमान की गारंटी नहीं है। अल्लाह के सामने सिर्फ़ ईमान और नेक अमल ही काम आते हैं।


तूफ़ान के बाद

जब पानी उतर गया तो जहाज़ जूदी पहाड़ (इराक़ की तरफ़) पर ठहर गया। नूह (अ.स.) और उनके साथ के लोग सुरक्षित बाहर निकले। यही लोग आगे चलकर इंसानियत की नस्ल बने।

इसलिए नूह (अ.स.) को “आदम-ए-सानी” (दूसरे आदम) भी कहा जाता है।


क़ुरआन में हज़रत नूह (अ.स.) का ज़िक्र

क़ुरआन करीम में नूह (अ.स.) का नाम कई बार आया है। उनके नाम पर एक पूरी सूरह है – सूरह नूह

उनकी दुआ भी मशहूर है:

“ऐ मेरे रब, मुझे और मेरे वालिदैन को, और जो ईमान वाले मेरे घर में दाख़िल हों, सबको बख़्श दे।”
(सूरह नूह 28)


उनकी दावत की ख़ास बातें

  1. नूह (अ.स.) ने हमेशा नर्मी और रहमत के साथ बुलाया।
  2. उन्होंने अपनी क़ौम को अल्लाह की रहमत और मग़फ़िरत की खुशख़बरी दी।
  3. उन्होंने डर भी दिलाया कि अगर न माने तो अजाब आएगा।
  4. उन्होंने कभी हार नहीं मानी, 950 साल तक लगातार सब्र किया।

उनकी क़ौम का अंजाम

क़ुरआन बताता है कि नूह (अ.स.) की क़ौम ने झुठलाया, इसलिए उन्हें डुबो दिया गया। उनकी मिसाल उन लोगों के लिए सबक़ है जो नबियों की बात नहीं मानते।


सबक़ और सीख

हज़रत नूह (अ.स.) की ज़िन्दगी से हमें कई अहम बातें मिलती हैं:

  1. सब्र और इस्तिक़ामत – 950 साल तक बिना थके दावत देना इंसानियत के लिए बेहतरीन मिसाल है।
  2. अल्लाह पर भरोसा – नाव बनाते वक़्त लोग मज़ाक उड़ाते रहे, लेकिन नूह (अ.स.) अल्लाह पर यक़ीन रखते रहे।
  3. ईमान की अहमियत – नबी का बेटा भी अगर ईमान न लाए तो नजात (बचाव) नहीं पा सकता।
  4. अल्लाह की रहमत और अजाब – जो मानते हैं उन्हें रहमत मिलती है, और जो इंकार करते हैं उन्हें सख़्त सज़ा मिलती है।
  5. नेकी की दावत – हर इंसान की ज़िम्मेदारी है कि अपने घर, समाज और क़ौम को अल्लाह की तरफ़ बुलाए।

नूह (अ.स.) की दुआएँ

नूह (अ.स.) की दुआएँ क़ुरआन में दर्ज हैं। उनकी दुआ हमें तौबा और मग़फ़िरत का पैग़ाम देती है:

“ऐ मेरे रब, मुझे माफ़ कर, मेरे वालिदैन को माफ़ कर, और सभी ईमान वालों को माफ़ कर।”
(सूरह नूह 28)


वफ़ात

रिवायतों के मुताबिक़ नूह (अ.स.) ने बहुत लंबी उम्र पाई। कुछ कहते हैं कि उन्होंने 950 साल तक दावत दी और कुल उम्र 1000 साल से ज़्यादा रही। उनकी वफ़ात के बाद भी इंसानियत के लिए नबियों का सिलसिला जारी रहा।


निष्कर्ष

हज़रत नूह (अलैहिस्सलाम) की ज़िन्दगी इंसानियत के लिए एक बड़ा सबक़ है। वे सब्र, दावत और अल्लाह पर भरोसे की मिसाल हैं। उनकी क़ौम की तबाही हमें याद दिलाती है कि अल्लाह की बात मानना ही नजात का रास्ता है।

नूह (अ.स.) का तुफ़ान हमें सिखाता है कि दुनिया चाहे कितना मज़ाक उड़ाए, अल्लाह के हुक्म और नबी की दावत ही हक़ है।


हज़रत इदरीस (अ.स.)..


हज़रत इदरीस (अलैहिस्सलाम) – इस्लामिक नज़र से

भूमिका

हज़रत आदम (अलैहिस्सलाम) के बाद अल्लाह तआला ने जिन नबियों को इंसानियत की हिदायत के लिए भेजा, उनमें दूसरे नबी माने जाते हैं हज़रत इदरीस (अलैहिस्सलाम)। क़ुरआन करीम में उनका ज़िक्र कई जगह आया है। इस्लामी इतिहासकार बताते हैं कि वे बहुत ही अ़ाबिद (इबादत करने वाले), ज़ाहिद (दुनियावी लालच से दूर), और इल्म व हुनर के माहिर थे।

उनका असली नाम अख़नूख़ बताया जाता है और “इदरीस” उपाधि (लक़ब) उन्हें इस वजह से मिली क्योंकि वे बहुत ज़्यादा इल्म (ज्ञान) हासिल करते और लोगों को पढ़ाते थे।


जन्म और वंश

रिवायतों के मुताबिक़, हज़रत इदरीस (अ.स.) हज़रत शीस (अ.स.) के वंश से थे और हज़रत आदम (अ.स.) के परपोते माने जाते हैं।

  • आदम (अ.स.) → शीस (अ.स.) → अनूश → कैनान → महलइल → यर्द → इदरीस (अ.स.)

इस तरह इदरीस (अ.स.) आदम (अ.स.) से छठी नस्ल में जुड़े हुए हैं।


क़ुरआन में हज़रत इदरीस (अ.स.) का ज़िक्र

क़ुरआन मजीद में हज़रत इदरीस (अ.स.) का नाम दो जगह आता है:

  1. सूरह मरयम (56-57):

“और किताब में इदरीस का ज़िक्र करो। बेशक वह बहुत सच्चे नबी थे। हमने उन्हें बुलंद मुक़ाम पर उठाया।”

  1. सूरह अंबिया (85-86):

“और इस्माईल, इदरीस और ज़ुलकिफ़्ल – ये सब सब्र करने वालों में से थे। हमने उन्हें अपनी रहमत में दाख़िल किया, वो निस्संदेह नेक लोगों में से थे।”

इन आयतों से मालूम होता है कि हज़रत इदरीस (अ.स.) सच्चे, सब्र करने वाले और नेक नबी थे।


पैग़म्बरी और दावत

अल्लाह तआला ने हज़रत इदरीस (अ.स.) को नबूवत दी। उस ज़माने में लोग फिर से गुमराही की तरफ़ जा रहे थे। वे बुत-परस्ती और गुनाहों में पड़ने लगे थे।

इदरीस (अ.स.) ने अपनी क़ौम को समझाया:

  • सिर्फ़ अल्लाह की इबादत करो।
  • शिर्क और गुनाहों से बचो।
  • सच बोलो, झूठ और धोखा छोड़ दो।
  • नेकी और इंसाफ़ पर क़ायम रहो।

कुछ लोग मान गए, लेकिन बहुत से लोग हठधर्मी पर अड़े रहे।


इल्म और हुनर

हज़रत इदरीस (अ.स.) को इल्म और हुनर में ख़ास दर्जा दिया गया था। रिवायतों में आता है कि:

  1. उन्होंने सबसे पहले क़लम से लिखना सिखाया।
  2. उन्होंने लोगों को सिलाई का काम (कपड़े सीना) सिखाया।
  3. वे सितारों और आसमानी निज़ाम (astronomy) के बारे में इल्म रखते थे।
  4. उन्होंने इंसानों को हिफ़ाज़ती हथियार (हथियार बनाना) भी सिखाया।

इस वजह से उन्हें “मुअल्लिमुल-बशर” यानी इंसानों का पहला उस्ताद भी कहा जाता है।


इबादत और सब्र

हज़रत इदरीस (अ.स.) बहुत इबादत करने वाले थे। कहा जाता है कि वे दिन का बड़ा हिस्सा रोज़े में और रात का बड़ा हिस्सा नमाज़ में गुज़ारते। अल्लाह की याद और तौबा हमेशा उनकी ज़िन्दगी का हिस्सा रही।

उनकी सब्र और इस्तिक़ामत (दृढ़ता) की वजह से अल्लाह ने उनका नाम क़ुरआन में “सब्र करने वालों” के साथ लिया।


बुलंद मक़ाम

क़ुरआन में आया है कि अल्लाह ने हज़रत इदरीस (अ.स.) को “बुलंद मुक़ाम” पर उठाया।
मुफ़स्सिरीन (तफ़्सीर करने वाले) अलग-अलग राय देते हैं:

  • कुछ कहते हैं कि उन्हें आसमान पर उठा लिया गया, जैसे हज़रत ईसा (अ.स.) को।
  • कुछ कहते हैं कि यह उनके दर्जे और मक़ाम की बुलंदी की तरफ़ इशारा है।

ख़ुलासा यह है कि इदरीस (अ.स.) को अल्लाह ने दुनियावी और आख़िरती तौर पर बहुत ऊँचा मक़ाम अता किया।


उनकी क़ौम का हाल

हज़रत इदरीस (अ.स.) की नसीहतों के बावजूद उनकी क़ौम में गुमराही और गुनाह मौजूद रहे। लेकिन उनके मानने वाले लोग हमेशा नेक काम करते रहे। यही लोग बाद में नूह (अ.स.) के दौर तक पहुँचे।


हज़रत इदरीस (अ.स.) की वफ़ात

उनकी वफ़ात के बारे में अलग-अलग रिवायतें मिलती हैं।

  • कुछ कहते हैं कि उन्हें आसमान पर ही उठा लिया गया और वहीं उनकी ज़िन्दगी पूरी हुई।
  • कुछ कहते हैं कि अल्लाह ने उन्हें मौत दिए बग़ैर ही अपने पास बुला लिया।

इस बारे में सही इल्म सिर्फ़ अल्लाह के पास है।


हज़रत इदरीस (अ.स.) से सबक़

उनकी ज़िन्दगी से हमें कई अहम बातें सीखने को मिलती हैं:

  1. इल्म और तालीम की अहमियत – लिखना, पढ़ना, हुनर सिखाना सब इंसानियत की भलाई के लिए है।
  2. सब्र और इस्तिक़ामत – मुश्किल हालात में भी अल्लाह की इबादत और सच्चाई पर डटे रहना।
  3. तकब्बुर से बचना – इंसानियत को ऊँचा दर्जा इल्म और नेकी से मिलता है, घमंड से नहीं।
  4. अल्लाह पर भरोसा – नबी की ज़िन्दगी हमें सिखाती है कि मुश्किल में भी अल्लाह पर भरोसा रखना चाहिए।
  5. दुनिया और आख़िरत का ताल्लुक़ – इंसान को सिर्फ़ दुनिया नहीं, बल्कि आख़िरत की भी फ़िक्र करनी चाहिए।

इस्लामी नज़रिए से उनकी अहमियत

  • वे आदम (अ.स.) के बाद पहले नबी हैं।
  • उन्होंने इंसानों को इल्म और हुनर सिखाया।
  • उन्होंने तौहीद (एक अल्लाह की इबादत) का पैग़ाम दिया।
  • उनका मक़ाम इतना ऊँचा है कि क़ुरआन में अल्लाह ने उनकी सच्चाई और बुलंद दर्जा बयान किया।

निष्कर्ष

हज़रत इदरीस (अलैहिस्सलाम) इस्लामी इतिहास के उन महान नबियों में से हैं जिनका नाम क़ुरआन में आया है। वे इल्म और तालीम के पैग़म्बर थे। उनकी ज़िन्दगी हमें सिखाती है कि इंसान को इल्म सीखना चाहिए, हुनर अपनाना चाहिए, सब्र और इबादत में डटे रहना चाहिए और हमेशा अल्लाह पर भरोसा करना चाहिए।

इदरीस (अ.स.) की दावत और उनकी तालीम आज भी इंसानियत के लिए एक रहनुमाई है।


हज़रत आदम अलैहिस्सलाम.


हज़रत आदम (अलैहिस्सलाम) – इस्लामिक दृष्टिकोण से

इस्लामिक इतिहास में सबसे पहले नबी और सबसे पहले इंसान का नाम है हज़रत आदम (अलैहिस्सलाम)। अल्लाह तआला ने इन्हें अपनी ख़ास क़ुदरत से पैदा किया और सारी इंसानियत को इनकी औलाद बनाया। क़ुरआन करीम और हदीस शरीफ़ में हज़रत आदम (अ.स.) का ज़िक्र विस्तार से मिलता है।

आदम (अ.स.) की पैदाइश

अल्लाह तआला ने जब इस दुनिया को बनाने का इरादा किया तो सबसे पहले फ़रिश्तों को बताया कि:

“मैं ज़मीन पर एक ख़लीफ़ा (प्रतिनिधि) बनाने वाला हूँ।”
(क़ुरआन, सूरह बक़रः 30)

फ़रिश्तों ने हैरत से पूछा कि क्या आप ऐसे को बनाएँगे जो फ़साद करेगा और ख़ून बहाएगा? लेकिन अल्लाह तआला ने फ़रमाया: “मैं वो जानता हूँ जो तुम नहीं जानते।”

इसके बाद अल्लाह ने मिट्टी से आदम (अ.स.) का ख़ाक़ा (ढाँचा) बनाया। फिर उसमें अपनी रूह फूँकी और आदम (अ.स.) ज़िन्दा हो गए। यही से इंसानियत का सिलसिला शुरू हुआ।

आदम (अ.स.) को इल्म (ज्ञान) दिया गया

अल्लाह तआला ने आदम (अ.स.) को तमाम चीज़ों के नाम और उनका इल्म सिखाया। यह अल्लाह की तरफ़ से एक बड़ा शरफ़ (सम्मान) था। जब फ़रिश्तों से पूछा गया कि इन चीज़ों के नाम बताओ तो वे न बता सके। फिर आदम (अ.स.) ने सभी नाम बताए। इस तरह अल्लाह ने दिखा दिया कि आदम (अ.स.) को इल्म की वजह से फ़रिश्तों पर फ़ज़ीलत (श्रेष्ठता) हासिल है।

फ़रिश्तों का सज्दा

अल्लाह तआला ने फ़रिश्तों को हुक्म दिया कि आदम (अ.स.) के सामने सज्दा करो। सब फ़रिश्तों ने सज्दा किया, लेकिन इब्लीस (शैतान) ने सज्दा करने से इंकार किया। उसका कहना था कि मैं आग से बना हूँ और आदम मिट्टी से बने हैं, इसलिए मैं बेहतर हूँ। घमंड और नाफ़रमानी की वजह से इब्लीस लानती और रद्द कर दिया गया।

जन्नत की ज़िन्दगी और इम्तिहान

अल्लाह तआला ने आदम (अ.स.) और उनकी पत्नी हव्वा (अ.स.) को जन्नत में रखा और कहा कि यहाँ आराम से रहो, हर नेमत का इस्तेमाल करो, मगर एक ख़ास दरख़्त (पेड़) के क़रीब मत जाना।

लेकिन शैतान ने धोखा देकर आदम और हव्वा को बहकाया। उसने कहा कि यह पेड़ अमर (हमेशा की ज़िन्दगी) और बादशाही का है। धोखे में आकर उन्होंने उस पेड़ का फल खा लिया। नतीजा यह हुआ कि अल्लाह तआला ने उन्हें जन्नत से नीचे ज़मीन पर उतार दिया।

तौबा और मग़फ़िरत

हालाँकि आदम (अ.स.) से ग़लती हुई, लेकिन उन्होंने फ़ौरन अल्लाह से तौबा की। क़ुरआन में आता है:

“हमने आदम को कुछ कलिमात सिखाए, उन्होंने उनसे दुआ की और अल्लाह ने उनकी तौबा क़ुबूल कर ली।”
(सूरह बक़रः 37)

इससे मालूम होता है कि इंसान ग़लती कर सकता है, लेकिन अल्लाह की रहमत बहुत बड़ी है।

आदम (अ.स.) की ज़िन्दगी

आदम (अ.स.) को अल्लाह ने नबूवत दी। वे अपने बेटों और क़ौम को अल्लाह की इबादत करने और नेक राह अपनाने की तालीम देते रहे।

उनके बेटों में हाबील (Abel) और क़ाबील (Cain) मशहूर हैं। क़ाबील ने अपने भाई हाबील की क़त्ल कर दिया, जो इंसानियत की पहली हत्या थी। इस घटना से यह सबक़ मिलता है कि इंसान के अंदर अगर नफ़्स (हवस और ग़ुस्सा) काबू में न हो, तो वह बड़ा गुनाह कर बैठता है।

इंसानियत के पहले नबी

हज़रत आदम (अ.स.) ही वह पहले इंसान हैं जिन्हें अल्लाह ने सीधे अपने हाथों से पैदा किया। इन्हें ही पहला नबी बनाया गया। सारी इंसानियत उन्हीं की औलाद है। क़ुरआन में उन्हें अबुल-बशर (यानी इंसानों का बाप) कहा गया है।

सबक़ (सीख)

हज़रत आदम (अलैहिस्सलाम) की ज़िन्दगी से हमें कई अहम सबक़ मिलते हैं:

  1. इल्म की अहमियत – इंसान को अल्लाह ने इल्म की वजह से इज़्ज़त दी।
  2. तकब्बुर (घमंड) की बुराई – शैतान सिर्फ़ घमंड की वजह से हमेशा के लिए रद्द कर दिया गया।
  3. ग़लती पर तौबा – इंसान ग़लती करता है, लेकिन तौबा से अल्लाह माफ़ कर देता है।
  4. इम्तिहान – जन्नत में भी आदम (अ.स.) को आज़माया गया, इससे पता चलता है कि दुनिया में इंसान हर हाल में इम्तिहान से गुज़रता है।
  5. नफ़्स पर क़ाबू – क़ाबील और हाबील की घटना से मालूम होता है कि ग़ुस्सा और हसद इंसान को बरबाद कर देता है।

वफ़ात (मौत)

रिवायतों के मुताबिक़ हज़रत आदम (अ.स.) ने लगभग 1000 साल ज़िन्दगी पाई। उनकी वफ़ात के बाद नबियों का सिलसिला जारी रहा और एक-एक करके इंसानियत को हिदायत मिलती रही।


निष्कर्ष

हज़रत आदम (अलैहिस्सलाम) इस्लाम के नज़रिए से पहले नबी और पहले इंसान हैं। उनकी ज़िन्दगी इंसान के लिए एक मिसाल है। उनसे हमें यह सिखने को मिलता है कि अल्लाह की इबादत, इल्म की क़द्र, ग़लती पर तौबा, और नफ़्स पर क़ाबू बहुत ज़रूरी है।.