जंग तूर (732 ईस्वी) – इस्लामी और यूरोपीय इतिहास का अहम मोड़
इस्लामी इतिहास और यूरोपीय इतिहास में कुछ जंगें ऐसी हैं जिनका असर सदियों तक महसूस किया गया। उन्हीं में से एक है जंग तूर (Battle of Tours)। यह जंग सन 732 ईस्वी में मुसलमानों और यूरोप की फ़्रैंक्स ताक़त के बीच लड़ी गई थी। इसे कभी-कभी जंग पोआतिए (Battle of Poitiers) भी कहा जाता है, क्योंकि यह फ्रांस के शहर पोआतिए के पास हुई थी।
इस जंग को यूरोप में इस तरह याद किया जाता है कि अगर मुसलमान जीत जाते, तो शायद पूरी यूरोप की तहज़ीब बदल जाती। आइए इसे आसान भाषा में समझते हैं।
पृष्ठभूमि
- मुसलमानों ने 711 ईस्वी में अल-अंदलुस (Spain और Portugal) फ़तह कर लिया था।
- वहाँ से इस्लामी फ़ौजें धीरे-धीरे फ़्रांस की तरफ़ बढ़ने लगीं।
- शुरुआती जीतों ने मुसलमानों का हौसला बुलंद किया और वे और आगे बढ़े।
- उस वक़्त यूरोप छोटे-छोटे राज्यों में बँटा हुआ था और वहाँ की सबसे मज़बूत ताक़त थी फ़्रैंक्स साम्राज्य (Franks Kingdom)।
- फ़्रैंक्स का सेनापति था चार्ल्स मार्टल (Charles Martel)।
मुसलमान सेनापति
- इस जंग में मुसलमान फ़ौज की अगुवाई अब्दुर्रहमान अल-ग़ाफ़िकी (Abdul Rahman al-Ghafiqi) कर रहे थे।
- वे अंदलुस (Spain) के गवर्नर थे और एक बहादुर व अनुभवी सेनापति माने जाते थे।
- उन्होंने अपनी फ़ौज के साथ फ्रांस की तरफ़ क़दम बढ़ाया।
जंग का मैदान
- मुसलमानों की फ़ौज और फ़्रैंक्स की फ़ौज आमने-सामने तूर और पोआतिए के बीच के इलाके में आईं।
- कहा जाता है कि मुसलमान फ़ौज में लगभग 20,000 से 25,000 सैनिक थे, जबकि फ़्रैंक्स की फ़ौज इससे कहीं बड़ी, करीब 30,000 से 40,000 थी।
- फ़्रैंक्स के पास भारी पैदल सेना थी, जबकि मुसलमानों के पास तेज़ घुड़सवार और सवार फ़ौज थी।
जंग का आरंभ
- जंग कई दिनों तक चली।
- मुसलमान बार-बार अपने घुड़सवार दस्तों से हमला करते रहे।
- फ़्रैंक्स ने मज़बूत दीवार बनाकर डटे रहना चुना और पैदल सेना को मज़बूत पंक्तियों में खड़ा कर दिया।
- इस वजह से मुसलमानों के तेज़ घोड़े बार-बार टकराते लेकिन दीवार तोड़ नहीं पाते।
अब्दुर्रहमान की शहादत
- जंग के दौरान मुसलमानों के सेनापति अब्दुर्रहमान अल-ग़ाफ़िकी शहीद हो गए।
- यह मुसलमानों के लिए बहुत बड़ा नुकसान था, क्योंकि फ़ौज को दिशा देने वाला उनका नेता चला गया।
- इसके बाद मुसलमानों की फ़ौज बिखरने लगी।
- नतीजा यह हुआ कि चार्ल्स मार्टल की फ़ौज ने जीत हासिल की।
नतीजा और असर
- इस जंग के बाद मुसलमानों की फ़ौज फ्रांस से पीछे हट गई और वे दुबारा वहाँ बड़े पैमाने पर आगे नहीं बढ़ सके।
- इस वजह से यूरोप के इतिहासकार इसे “Turning Point of European History” कहते हैं।
- अगर मुसलमान जीत जाते तो शायद फ्रांस, जर्मनी और उत्तरी यूरोप का नक़्शा बदल जाता।
- कई यूरोपीय किताबों में लिखा गया कि यह जंग यूरोप की “Christian Identity” बचाने वाली जंग थी।
मुसलमानों पर असर
- अल-अंदलुस (Spain) में मुसलमानों की हुकूमत फिर भी क़ायम रही और अगले कई सौ साल तक जारी रही।
- लेकिन तूर की हार ने यूरोप में आगे बढ़ने के उनके इरादे को रोक दिया।
- इसके बाद मुसलमान ज़्यादातर स्पेन और पुर्तगाल तक सीमित रहे।
यूरोप पर असर
- यूरोप ने इस जंग को अपनी बड़ी जीत माना।
- चार्ल्स मार्टल को “The Savior of Europe” कहा गया।
- उसकी इस जीत ने फ़्रैंक्स साम्राज्य को और मज़बूत बना दिया।
- बाद में उसके परिवार से ही चार्लमेन (Charlemagne) नाम का सम्राट पैदा हुआ जिसने यूरोप को और ताक़तवर बनाया।
इतिहासकारों की राय
- कुछ इतिहासकार कहते हैं कि तूर की जंग को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया गया है।
- उनका मानना है कि मुसलमानों का असली मक़सद पूरे यूरोप पर क़ब्ज़ा करना नहीं था, बल्कि सिर्फ़ कुछ हिस्सों को लूटना और ताक़त दिखाना था।
- लेकिन ज़्यादातर यूरोपीय लेखक इसे यूरोप की सबसे अहम जंग मानते हैं।
- मुसलमान इतिहासकार इसे एक आम जंग की तरह बताते हैं और कहते हैं कि यह सिर्फ़ एक हार थी, कोई बड़ा मोड़ नहीं।
सबक
जंग तूर हमें यह सिखाती है:
- जंग में नेतृत्व (Leadership) की अहमियत बहुत बड़ी होती है। अब्दुर्रहमान की शहादत ने मुसलमानों को हार की तरफ़ धकेल दिया।
- एकजुट और मज़बूत फ़ौज बड़े दुश्मन को भी रोक सकती है।
- हर जंग का असर सिर्फ़ उस वक़्त पर नहीं बल्कि सदियों तक रहता है।
नतीजा
जंग तूर (732 ईस्वी) सिर्फ़ एक जंग नहीं थी, बल्कि यह यूरोप और इस्लामी दुनिया के लिए एक बड़ा मोड़ साबित हुई।
- मुसलमानों की आगे बढ़ने की कोशिश यहाँ रुक गई।
- यूरोप ने अपनी पहचान और ताक़त संभाल ली।
- अल-अंदलुस फिर भी एक मज़बूत इस्लामी तहज़ीब का मरकज़ बना रहा, लेकिन फ्रांस और उत्तरी यूरोप में इस्लामी असर नहीं बढ़ सका।
इस तरह यह जंग हमें यह याद दिलाती है कि इतिहास की कुछ घटनाएँ दुनिया की दिशा बदल देती हैं।