हज़रत इदरीस (अ.स.)..


हज़रत इदरीस (अलैहिस्सलाम) – इस्लामिक नज़र से

भूमिका

हज़रत आदम (अलैहिस्सलाम) के बाद अल्लाह तआला ने जिन नबियों को इंसानियत की हिदायत के लिए भेजा, उनमें दूसरे नबी माने जाते हैं हज़रत इदरीस (अलैहिस्सलाम)। क़ुरआन करीम में उनका ज़िक्र कई जगह आया है। इस्लामी इतिहासकार बताते हैं कि वे बहुत ही अ़ाबिद (इबादत करने वाले), ज़ाहिद (दुनियावी लालच से दूर), और इल्म व हुनर के माहिर थे।

उनका असली नाम अख़नूख़ बताया जाता है और “इदरीस” उपाधि (लक़ब) उन्हें इस वजह से मिली क्योंकि वे बहुत ज़्यादा इल्म (ज्ञान) हासिल करते और लोगों को पढ़ाते थे।


जन्म और वंश

रिवायतों के मुताबिक़, हज़रत इदरीस (अ.स.) हज़रत शीस (अ.स.) के वंश से थे और हज़रत आदम (अ.स.) के परपोते माने जाते हैं।

  • आदम (अ.स.) → शीस (अ.स.) → अनूश → कैनान → महलइल → यर्द → इदरीस (अ.स.)

इस तरह इदरीस (अ.स.) आदम (अ.स.) से छठी नस्ल में जुड़े हुए हैं।


क़ुरआन में हज़रत इदरीस (अ.स.) का ज़िक्र

क़ुरआन मजीद में हज़रत इदरीस (अ.स.) का नाम दो जगह आता है:

  1. सूरह मरयम (56-57):

“और किताब में इदरीस का ज़िक्र करो। बेशक वह बहुत सच्चे नबी थे। हमने उन्हें बुलंद मुक़ाम पर उठाया।”

  1. सूरह अंबिया (85-86):

“और इस्माईल, इदरीस और ज़ुलकिफ़्ल – ये सब सब्र करने वालों में से थे। हमने उन्हें अपनी रहमत में दाख़िल किया, वो निस्संदेह नेक लोगों में से थे।”

इन आयतों से मालूम होता है कि हज़रत इदरीस (अ.स.) सच्चे, सब्र करने वाले और नेक नबी थे।


पैग़म्बरी और दावत

अल्लाह तआला ने हज़रत इदरीस (अ.स.) को नबूवत दी। उस ज़माने में लोग फिर से गुमराही की तरफ़ जा रहे थे। वे बुत-परस्ती और गुनाहों में पड़ने लगे थे।

इदरीस (अ.स.) ने अपनी क़ौम को समझाया:

  • सिर्फ़ अल्लाह की इबादत करो।
  • शिर्क और गुनाहों से बचो।
  • सच बोलो, झूठ और धोखा छोड़ दो।
  • नेकी और इंसाफ़ पर क़ायम रहो।

कुछ लोग मान गए, लेकिन बहुत से लोग हठधर्मी पर अड़े रहे।


इल्म और हुनर

हज़रत इदरीस (अ.स.) को इल्म और हुनर में ख़ास दर्जा दिया गया था। रिवायतों में आता है कि:

  1. उन्होंने सबसे पहले क़लम से लिखना सिखाया।
  2. उन्होंने लोगों को सिलाई का काम (कपड़े सीना) सिखाया।
  3. वे सितारों और आसमानी निज़ाम (astronomy) के बारे में इल्म रखते थे।
  4. उन्होंने इंसानों को हिफ़ाज़ती हथियार (हथियार बनाना) भी सिखाया।

इस वजह से उन्हें “मुअल्लिमुल-बशर” यानी इंसानों का पहला उस्ताद भी कहा जाता है।


इबादत और सब्र

हज़रत इदरीस (अ.स.) बहुत इबादत करने वाले थे। कहा जाता है कि वे दिन का बड़ा हिस्सा रोज़े में और रात का बड़ा हिस्सा नमाज़ में गुज़ारते। अल्लाह की याद और तौबा हमेशा उनकी ज़िन्दगी का हिस्सा रही।

उनकी सब्र और इस्तिक़ामत (दृढ़ता) की वजह से अल्लाह ने उनका नाम क़ुरआन में “सब्र करने वालों” के साथ लिया।


बुलंद मक़ाम

क़ुरआन में आया है कि अल्लाह ने हज़रत इदरीस (अ.स.) को “बुलंद मुक़ाम” पर उठाया।
मुफ़स्सिरीन (तफ़्सीर करने वाले) अलग-अलग राय देते हैं:

  • कुछ कहते हैं कि उन्हें आसमान पर उठा लिया गया, जैसे हज़रत ईसा (अ.स.) को।
  • कुछ कहते हैं कि यह उनके दर्जे और मक़ाम की बुलंदी की तरफ़ इशारा है।

ख़ुलासा यह है कि इदरीस (अ.स.) को अल्लाह ने दुनियावी और आख़िरती तौर पर बहुत ऊँचा मक़ाम अता किया।


उनकी क़ौम का हाल

हज़रत इदरीस (अ.स.) की नसीहतों के बावजूद उनकी क़ौम में गुमराही और गुनाह मौजूद रहे। लेकिन उनके मानने वाले लोग हमेशा नेक काम करते रहे। यही लोग बाद में नूह (अ.स.) के दौर तक पहुँचे।


हज़रत इदरीस (अ.स.) की वफ़ात

उनकी वफ़ात के बारे में अलग-अलग रिवायतें मिलती हैं।

  • कुछ कहते हैं कि उन्हें आसमान पर ही उठा लिया गया और वहीं उनकी ज़िन्दगी पूरी हुई।
  • कुछ कहते हैं कि अल्लाह ने उन्हें मौत दिए बग़ैर ही अपने पास बुला लिया।

इस बारे में सही इल्म सिर्फ़ अल्लाह के पास है।


हज़रत इदरीस (अ.स.) से सबक़

उनकी ज़िन्दगी से हमें कई अहम बातें सीखने को मिलती हैं:

  1. इल्म और तालीम की अहमियत – लिखना, पढ़ना, हुनर सिखाना सब इंसानियत की भलाई के लिए है।
  2. सब्र और इस्तिक़ामत – मुश्किल हालात में भी अल्लाह की इबादत और सच्चाई पर डटे रहना।
  3. तकब्बुर से बचना – इंसानियत को ऊँचा दर्जा इल्म और नेकी से मिलता है, घमंड से नहीं।
  4. अल्लाह पर भरोसा – नबी की ज़िन्दगी हमें सिखाती है कि मुश्किल में भी अल्लाह पर भरोसा रखना चाहिए।
  5. दुनिया और आख़िरत का ताल्लुक़ – इंसान को सिर्फ़ दुनिया नहीं, बल्कि आख़िरत की भी फ़िक्र करनी चाहिए।

इस्लामी नज़रिए से उनकी अहमियत

  • वे आदम (अ.स.) के बाद पहले नबी हैं।
  • उन्होंने इंसानों को इल्म और हुनर सिखाया।
  • उन्होंने तौहीद (एक अल्लाह की इबादत) का पैग़ाम दिया।
  • उनका मक़ाम इतना ऊँचा है कि क़ुरआन में अल्लाह ने उनकी सच्चाई और बुलंद दर्जा बयान किया।

निष्कर्ष

हज़रत इदरीस (अलैहिस्सलाम) इस्लामी इतिहास के उन महान नबियों में से हैं जिनका नाम क़ुरआन में आया है। वे इल्म और तालीम के पैग़म्बर थे। उनकी ज़िन्दगी हमें सिखाती है कि इंसान को इल्म सीखना चाहिए, हुनर अपनाना चाहिए, सब्र और इबादत में डटे रहना चाहिए और हमेशा अल्लाह पर भरोसा करना चाहिए।

इदरीस (अ.स.) की दावत और उनकी तालीम आज भी इंसानियत के लिए एक रहनुमाई है।