हज़रत मैमूना बिन्ते हारिस…


हज़रत मैमूना बिन्ते हारिस (रज़ियल्लाहु अन्हा) – उम्महातुल मोमिनीन

इस्लाम के इतिहास में जिन औरतों ने अपना नाम इबादत, सादगी और रसूलुल्लाह ﷺ की मोहब्बत से रोशन किया, उनमें हज़रत मैमूना बिन्ते हारिस (रज़ियल्लाहु अन्हा) का नाम भी शामिल है। वह उम्महातुल मोमिनीन में से आख़िरी बीवी थीं, जिनसे रसूलुल्लाह ﷺ ने निकाह किया।


जन्म और परिवार

हज़रत मैमूना (र.अ.) का जन्म मक्का के क़रीब हुआ। उनके वालिद का नाम हारिस बिन हज़न और वालिदा का नाम हिंद बिन्ते औफ़ था।

हिंद बिन्ते औफ़ को अरब की “सबसे नेक औरत” कहा जाता था, क्योंकि उनकी बेटियों का निकाह बहुत बड़े और नेक लोगों से हुआ। हज़रत मैमूना (र.अ.) की बहन उम्मुल फज़्ल लुबाबा (र.अ.) थीं, जो हज़रत अब्बास (र.अ.) की बीवी थीं। इस तरह हज़रत मैमूना (र.अ.) का घराना सीधे रसूलुल्लाह ﷺ के क़रीबी रिश्तेदारों से जुड़ा हुआ था।


पहला निकाह और विधवा होना

मैमूना (र.अ.) का पहला निकाह मसऊद बिन अम्र से हुआ था। लेकिन यह निकाह ज़्यादा दिनों तक नहीं चला। बाद में उन्होंने अबू रह्म बिन अब्दुल उज़्ज़ा से निकाह किया। लेकिन कुछ ही समय बाद वह भी इंतिक़ाल कर गए। इस तरह मैमूना (र.अ.) कम उम्र में ही विधवा हो गईं।


रसूलुल्लाह ﷺ से निकाह

हिजरत के बाद 7 हिजरी में, जब रसूलुल्लाह ﷺ उमरा क़ज़ा (उमरा-ए-प्रतिपूर्ति) अदा करने मक्का आए, तो हज़रत अब्बास (र.अ.) ने अपनी साली मैमूना (र.अ.) का रिश्ता रसूलुल्लाह ﷺ को पेश किया।

रसूलुल्लाह ﷺ ने इसे क़ुबूल किया और इस तरह हज़रत मैमूना (र.अ.) का निकाह रसूलुल्लाह ﷺ से हुआ। यह निकाह “सरय्या-ए-मुअता” के बाद और “ग़ज़वा-ए-हुनेन” से पहले हुआ।

कहा जाता है कि यह निकाह उमर-ए-क़ज़ा से वापसी पर सरफ़-नाम की जगह हुआ। वहीं निकाह का ऐलान किया गया और यह रसूलुल्लाह ﷺ का आख़िरी निकाह था।


स्वभाव और सादगी

हज़रत मैमूना (र.अ.) बहुत ही सादगी पसंद, परहेज़गार और अल्लाह से डरने वाली औरत थीं। उनका स्वभाव बेहद नर्म और दिल बहुत बड़ा था।

उनका घराना भी इस्लाम की ख़िदमत करने वाला था। उनकी बहन उम्मुल फज़्ल (र.अ.) हज़रत अब्बास (र.अ.) के साथ हर मुश्किल घड़ी में मुसलमानों के साथ रहीं।


इल्म और हदीस की रिवायत

हज़रत मैमूना (र.अ.) ने रसूलुल्लाह ﷺ से बहुत-सी हदीसें रिवायत कीं। वह रसूलुल्लाह ﷺ की इबादतों और घर के मामलात की गवाह रहीं।

उनसे तक़रीबन 76 हदीसें बयान की गईं, जिन्हें बुख़ारी, मुस्लिम और दूसरी किताबों में दर्ज किया गया है। इन हदीसों में रसूलुल्लाह ﷺ की इबादत, रोज़मर्रा की ज़िंदगी और अख़लाक़ का ज़िक्र मिलता है।


आख़िरी ज़िंदगी और इंतिक़ाल

हज़रत मैमूना (र.अ.) ने अपनी ज़िंदगी का बड़ा हिस्सा मदीना मुनव्वरा में गुज़ारा। वह अक्सर इबादत और दूसरों की मदद में लगी रहतीं।

उनका इंतिक़ाल 51 हिजरी (कुछ रिवायतों के मुताबिक़ 61 हिजरी) में हुआ। जब उनका वक़्त आया तो उन्होंने दुआ की:

“अल्लाहुम्मा ला तमिक़नी”
“ऐ अल्लाह! मुझे और तकलीफ़ मत दे।”

उनका जनाज़ा अब्दुल्लाह बिन अब्बास (र.अ.) ने पढ़ाया और उन्हें उसी जगह दफ़न किया गया जहाँ उनका निकाह रसूलुल्लाह ﷺ से हुआ था – सरफ़ नामी जगह।


सबक़ और नसीहत

हज़रत मैमूना (र.अ.) की ज़िंदगी हमें कई सबक़ देती है:

  • मुश्किलात के बावजूद ईमान पर क़ायम रहना चाहिए।
  • सादगी और परहेज़गारी ही असली ज़ेवर है।
  • इल्म को फैलाना और दूसरों को नेकी की राह दिखाना एक बड़ा सदक़ा है।

नतीजा

हज़रत मैमूना बिन्ते हारिस (रज़ियल्लाहु अन्हा) उम्महातुल मोमिनीन में से एक थीं। उनकी ज़िंदगी इबादत, सादगी और इल्म से भरी हुई थी। वह आख़िरी बीवी थीं जिनसे रसूलुल्लाह ﷺ ने निकाह किया। उनका नाम हमेशा इस्लाम की नेक और पाक औरतों में लिया जाएगा।