हज़रत ज़ैनब बिन्ते जहश (रज़ि॰अ॰)
परिचय
हज़रत ज़ैनब बिन्ते जहश (रज़ि॰अ॰) उम्महातुल-मुमिनीन में से एक मशहूर औरत हैं। वह नबी मुहम्मद ﷺ की चचेरी बहन थीं और बाद में उनकी बीवी बनीं। उनकी ज़िन्दगी इस्लाम की कई अहम सीखों से भरी हुई है। उनका निकाह और उससे जुड़ा वाक़िया कुरआन करीम में भी बयान हुआ है, जो उनके मुक़ाम की गवाही देता है।
जन्म और परिवार
- हज़रत ज़ैनब (रज़ि॰अ॰) का जन्म मक्का शरीफ़ में हुआ।
- उनके वालिद का नाम जहश बिन रियाब और वालिदा का नाम उमैमा बिन्ते अब्दुल मुत्तलिब था।
- वालिदा की वजह से हज़रत ज़ैनब (रज़ि॰अ॰) का रिश्ता सीधे नबी ﷺ के साथ था, क्योंकि उमैमा नबी ﷺ की सगी फूफी थीं।
- इस तरह हज़रत ज़ैनब (रज़ि॰अ॰) नबी ﷺ की चचेरी बहन हुईं।
पहला निकाह
- इस्लाम ने क़बीलाई फ़र्क़ और ऊँच-नीच को मिटाने की कोशिश की।
- इसी मक़सद से नबी ﷺ ने अपनी चचेरी बहन ज़ैनब (रज़ि॰अ॰) का निकाह अपने आज़ाद किए हुए ग़ुलाम ज़ैद बिन हारिसा (रज़ि॰अ॰) से किया।
- लेकिन यह रिश्ता ज़्यादा दिन नहीं चला। मिज़ाज के फ़र्क़ और दूसरे कारणों से दोनों की जुदाई हो गई।
- यह वाक़िया उस वक़्त की अरब समाज में एक बड़ी मिसाल बना, क्योंकि इसने दिखा दिया कि रिश्ते इंसानियत और तक़वा पर होते हैं, न कि ऊँच-नीच पर।
नबी ﷺ से निकाह
- जब ज़ैद (रज़ि॰अ॰) से तलाक़ हो गया, तो अल्लाह तआला ने सीधे हुक्म दिया कि नबी ﷺ का निकाह ज़ैनब (रज़ि॰अ॰) से हो।
- कुरआन में सूरह अल-अहज़ाब (33:37) में यह वाक़िया बयान किया गया है।
- यह निकाह इस बात की मिसाल बना कि इस्लाम ने गोद लिए हुए बेटे (मुतबन्ना) को असली बेटे जैसा दर्ज़ा नहीं दिया।
- इस निकाह से अरबों की पुरानी रस्में टूट गईं और सही रास्ता सामने आया।
उम्मुल मोमिनीन का दर्ज़ा
- नबी ﷺ से निकाह के बाद हज़रत ज़ैनब (रज़ि॰अ॰) उम्मुल मोमिनीन बनीं।
- वह अपने तक़वा, सादगी और इबादतगुज़ारी की वजह से जानी जाती थीं।
- वह बहुत रोज़ा रखतीं और रातों को तहज्जुद की नमाज़ पढ़ा करतीं।
- गरीबों और मुहताजों की मदद करना उनका बड़ा गुण था।
स्वभाव और खूबियाँ
- हज़रत ज़ैनब (रज़ि॰अ॰) कभी-कभी सीधी और सख़्त बातें कर दिया करतीं, लेकिन उनका दिल बहुत साफ़ था।
- वह सच बोलने वाली और सच्चाई पर डटने वाली थीं।
- वह औरतों के मसाइल पर खुलकर राय देतीं और दूसरे सहाबा भी उनका एहतिराम करते थे।
- इबादत और तक़वा में उनका कोई सानी नहीं था।
दीनी योगदान
- हज़रत ज़ैनब (रज़ि॰अ॰) से भी हदीसें रिवायत हुईं।
- उन्होंने औरतों को इस्लाम की सही तालीम और इबादत की अहमियत समझाई।
- उनकी ज़िन्दगी से यह सबक़ मिलता है कि इंसान को तक़वा और अल्लाह की इबादत पर ध्यान देना चाहिए, न कि दुनियावी चीज़ों पर।
अहम वाक़ियात
- निकाह का इलाही हुक्म – उनका नबी ﷺ से निकाह सीधा अल्लाह के हुक्म से हुआ, जो उनके ऊँचे दर्ज़े की निशानी है।
- तक़वा की मिसाल – वह हमेशा इबादत और रोज़ों में लगी रहतीं।
- ग़रीबों से मोहब्बत – गरीबों और मुहताजों की मदद करना उनका बड़ा गुण था।
इन्तक़ाल
- हज़रत ज़ैनब बिन्ते जहश (रज़ि॰अ॰) का इंतक़ाल 20 हिजरी (लगभग 641 ईस्वी) में हुआ।
- उनका जनाज़ा हज़रत उमर फ़ारूक़ (रज़ि॰अ॰) ने पढ़ाया।
- उन्हें मदीना मुनव्वरा के मशहूर क़ब्रिस्तान जन्नतुल-बक़ी में दफ़न किया गया।
मुक़ाम और सबक़
- हज़रत ज़ैनब (रज़ि॰अ॰) का मुक़ाम बहुत ऊँचा है।
- उनकी ज़िन्दगी से हमें यह सबक़ मिलता है कि इंसानियत की असल क़ीमत तक़वा और अल्लाह का डर है, न कि क़बीलाई नस्ल या दौलत।
- उनका निकाह इस्लाम के एक अहम उसूल को सामने लाता है कि गोद लिए हुए बेटे असली बेटे नहीं होते और उनके अहकाम अलग हैं।
- उनकी इबादत और तक़वा आज भी हर औरत और मर्द के लिए मिसाल है।
✅ नतीजा
हज़रत ज़ैनब बिन्ते जहश (रज़ि॰अ॰) उम्मुल मोमिनीन में से एक महान औरत हैं। उनका इलाही हुक्म से हुआ निकाह और उनकी पूरी ज़िन्दगी इस्लाम की रोशनी से भरी हुई है। उन्होंने इबादत, सब्र और सच्चाई की जो मिसाल छोड़ी, वह हमेशा याद रखी जाएगी। उनकी ज़िन्दगी हमें यह सिखाती है कि अल्लाह के हुक्म के सामने इंसान को हमेशा सर झुकाना चाहिए।