उम्मयाद सल्तनत (661 ईस्वी के बाद): एक सरल परिचय
उम्मयाद सल्तनत इस्लामी इतिहास की पहली बड़ी वंशानुगत राजवंशीय शासन प्रणाली थी। इसका आरंभ 661 ईस्वी में हुसैन इब्न अली की शहादत के बाद हुआ। उम्मयाद सल्तनत ने इस्लामिक साम्राज्य को विस्तार देने और प्रशासनिक ढांचा मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसे अरबों के पहले बड़े साम्राज्य के रूप में भी देखा जाता है।
उम्मयाद सल्तनत की स्थापना
उम्मयाद वंश का उद्गम मक्का और दामिश्क के आसपास हुआ था। यह वंश पहले कुरीश कबीले का हिस्सा था। मुहम्मद साहब की मृत्यु (632 ई.) के बाद इस्लामिक साम्राज्य का नेतृत्व धीरे-धीरे उनके अनुयायियों और परिवार के सदस्यों ने संभाला। उम्मयाद सल्तनत की स्थापना मुहम्मद के चाचा के बेटे, मुआविया इब्न अबू सुफ़ियान ने की।
मुआविया ने 661 ईस्वी में खलिफ़ा बनकर दामिश्क को राजधानी बनाया। इस समय खलीफा की सत्ता पूरी तरह राजनीतिक और प्रशासनिक रूप में केंद्रीकृत हो गई।
उम्मयाद सल्तनत का विस्तार
उम्मयाद खलीफाओं के काल में इस्लामिक साम्राज्य का विस्तार बहुत तेज़ी से हुआ। यह साम्राज्य तीन महाद्वीपों में फैला:
- एशिया: फारस, आज का ईरान, अफगानिस्तान
- अफ्रीका: मिस्र और उत्तरी अफ्रीका के क्षेत्र
- यूरोप: स्पेन (अंडालूस) तक
उम्मयाद शासन ने इस्लाम को केवल धर्म तक ही सीमित नहीं रखा, बल्कि एक राजनीतिक और सांस्कृतिक शक्ति के रूप में फैलाया।
उम्मयाद खलीफाओं की सूची (मुख्य)
- मुआविया इब्न अबू सुफ़ियान (661-680 ई.)
- दामिश्क में राजधानी स्थापित की
- प्रशासनिक ढांचे को मजबूत किया
- बेहतरीन नौसैनिक शक्ति का विकास किया
- यज़ीद इब्न मुआविया (680-683 ई.)
- हुसैन की करबला में शहादत इसी काल में हुई
- साम्राज्य में आंतरिक संघर्ष और विद्रोह बढ़े
- मरवान इब्न मुहम्मद (684-685 ई.)
- उम्मयाद वंश को पुनः संगठित किया
- स्थायित्व लौटाने की कोशिश की
- अब्दुलमालिक इब्न मरवान (685-705 ई.)
- आर्थिक सुधार और कर प्रणाली का विकास
- अरबी भाषा को प्रशासनिक भाषा घोषित किया
- वारिस खलीफाएं (705-750 ई.)
- हिशाम इब्न अब्दुलमालिक और उनकी उत्तराधिकारियों ने यूरोप और अफ्रीका में विजयें प्राप्त की
- कला, वास्तुकला और संस्कृति का विकास किया
प्रशासनिक व्यवस्था
उम्मयाद सल्तनत की सफलता में केंद्रीकृत प्रशासन का बहुत बड़ा योगदान था। प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार थीं:
- राजधानी: दामिश्क
- सैनिक प्रशासन: सेनाओं का संगठन और सीमा सुरक्षा
- कर प्रणाली: ज़कात और कर संग्रह के लिए नए नियम
- सांस्कृतिक एकता: अरबी भाषा और इस्लामी कानून का विस्तार
उम्मयाद सल्तनत में समाज
उम्मयाद साम्राज्य में समाज मुख्य रूप से तीन भागों में बँटा था:
- अरब मुस्लिम: शासक और अधिकारी वर्ग
- मौलाना और आम मुस्लिम: व्यापार और कृषि में सक्रिय
- अस्मानियत और गैर-मुस्लिम: सीमित अधिकार और कर भुगतान
उम्मयादों ने गैर-मुस्लिमों के साथ धार्मिक सहिष्णुता दिखाई, लेकिन उन्हें कर (जिज़िया) देना अनिवार्य था।
कला, संस्कृति और स्थापत्य
उम्मयाद काल में इस्लामिक कला और स्थापत्य को नई ऊँचाई मिली। कुछ महत्वपूर्ण योगदान:
- दामिश्क की जामा मस्जिद: उम्मयाद स्थापत्य शैली का अद्भुत उदाहरण
- कुबा और गुफा मस्जिदें: मस्जिद निर्माण में नवाचार
- सिक्कों में अरबी लिपि: व्यापार और प्रशासन में एकरूपता
उम्मयाद काल ने मुस्लिम और गैर-मुस्लिम कलाओं को मिलाकर सांस्कृतिक मिश्रण को बढ़ावा दिया।
उम्मयाद सल्तनत का पतन
उम्मयाद सल्तनत का अंत 750 ईस्वी में हुआ। इसके पीछे मुख्य कारण थे:
- आंतरिक विद्रोह और सत्ता संघर्ष
- अधिकारियों और आम जनता में असंतोष
- अब्दुल्लाह इब्न मुहम्मद (अब्बासी) द्वारा विद्रोह
पतन के बाद उम्मयाद वंश के कुछ सदस्य स्पेन (अंडालूस) भाग गए और वहाँ कोर्डोबा में एक स्वतंत्र उम्मयाद राज्य की स्थापना की।
उम्मयाद सल्तनत का महत्व
- राजनीतिक: अरब साम्राज्य को संगठित और केंद्रीकृत किया
- सांस्कृतिक: इस्लामी कला, स्थापत्य और अरबी भाषा का विकास
- धार्मिक: इस्लामिक शासन प्रणाली और कानून का विस्तार
- वैश्विक प्रभाव: यूरोप और अफ्रीका तक इस्लाम का प्रसार
उम्मयाद सल्तनत ने इस्लामी इतिहास में पहला स्थायी और विस्तृत साम्राज्य स्थापित किया। इसने बाद के अब्बासी वंश के लिए आधार तैयार किया।
निष्कर्ष
उम्मयाद सल्तनत ने 661 ईस्वी से लेकर 750 ईस्वी तक इस्लामिक दुनिया में शासन किया। यह वंश राजनीतिक, प्रशासनिक, आर्थिक और सांस्कृतिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण था। उम्मयादों ने इस्लामी साम्राज्य का विस्तार किया, प्रशासनिक सुधार लागू किए और कला-संस्कृति को नया रूप दिया। हालांकि आंतरिक संघर्ष और विद्रोहों ने इसे कमजोर किया, लेकिन इसका प्रभाव इतिहास में आज भी स्पष्ट है।
उम्मयाद सल्तनत ने यह दिखाया कि इस्लामिक साम्राज्य केवल धार्मिक रूप से ही नहीं बल्कि राजनीतिक और सांस्कृतिक रूप से भी समृद्ध हो सकता है।