फ़रिश्तों पर ईमान (Faith in Angels in Islam)
भूमिका…….
इस्लाम में ईमान के छः अरकान (Articles of Faith) हैं। उनमें से एक अहम आधार है – फ़रिश्तों पर ईमान। मुसलमान के लिए यह ज़रूरी है कि वह अल्लाह पर, उसके फ़रिश्तों पर, उसकी किताबों पर, उसके रसूलों पर, क़यामत के दिन पर और तक़दीर पर ईमान लाए।
फ़रिश्तों पर ईमान का मतलब है – दिल से मानना कि फ़रिश्ते हक़ (सच्चाई) हैं, अल्लाह ने उन्हें पैदा किया है और वे हमेशा अल्लाह के हुक्म के मुताबिक काम करते हैं।
फ़रिश्ते कौन हैं?
- फ़रिश्ते अल्लाह की मख़लूक़ (सृष्टि) हैं।
- उन्हें अल्लाह ने नूर (प्रकाश) से पैदा किया है।
- वे अदृश्य (नज़र न आने वाले) हैं, लेकिन हर वक्त इंसान और दुनिया के कामों में अल्लाह के हुक्म से लगे रहते हैं।
- फ़रिश्तों की कोई अपनी मर्ज़ी नहीं होती, वे वही करते हैं जो अल्लाह उन्हें हुक्म देता है।
- कुरआन कहता है: “वे अल्लाह की नाफ़रमानी नहीं करते जिस चीज़ का हुक्म उन्हें दिया जाता है और वही करते हैं जो उन्हें हुक्म दिया जाता है।”
(कुरआन – सूरह तहरीम 66:6)
फ़रिश्तों पर ईमान का मतलब
फ़रिश्तों पर ईमान का अर्थ यह है कि:
- यह मानना कि वे अल्लाह की सच्ची मख़लूक़ हैं।
- उनका काम सिर्फ अल्लाह की इबादत करना और उसके हुक्मों को पूरा करना है।
- उनके नाम, काम और ज़िम्मेदारियों पर यक़ीन रखना (जितना कुरआन और हदीस से साबित है)।
- यह विश्वास करना कि उनकी तादाद बहुत ज़्यादा है, जिन्हें सिर्फ अल्लाह जानता है।
अहम फ़रिश्तों के नाम और उनके काम
- हज़रत जिब्रील (अ.स.)
- अल्लाह का कलाम (वही/पैग़ाम) नबियों तक पहुँचाना।
- कुरआन मजीद भी जिब्रील (अ.स.) के ज़रिए नबी ﷺ तक पहुंचाया गया।
- हज़रत मीकाईल (अ.स.)
- बारिश और रोज़ी की तक़सीम (वितरण) का काम।
- ज़मीन पर जानदारों की ज़रूरतें पूरी करने के लिए अल्लाह के हुक्म से ज़िम्मेदार।
- हज़रत इस्राफ़ील (अ.स.)
- क़यामत के दिन सूर (नफ़्ख़-ए-सूर) फूंकने का काम करेंगे।
- एक फूँक से सारी कायनात खत्म हो जाएगी, और दूसरी फूँक से सब लोग दोबारा ज़िंदा किए जाएंगे।
- हज़रत अज़्राईल (अ.स.) – मलिकुल मौत (मौत का फ़रिश्ता)
- इंसानों की रूह क़ब्ज़ करना (जान लेना)।
- मुनकर और नक़ीर
- कब्र में सवाल करने वाले फ़रिश्ते।
- मरने के बाद हर इंसान से पूछेंगे – “तुम्हारा रब कौन है? तुम्हारा नबी कौन है? तुम्हारा दीन क्या है?”
- किरामन कातिबीन
- हर इंसान के साथ दो फ़रिश्ते रहते हैं।
- एक उसके नेक काम लिखता है, और दूसरा उसके गुनाह।
- कुरआन कहता है: “जब इंसान कोई बात ज़ुबान से कहता है, तो उसके पास एक निगहबान (फ़रिश्ता) मौजूद होता है।” (सूरह क़ाफ़ 50:18)
- मलिक (जहन्नम का फ़रिश्ता)
- जहन्नम (नर्क) का काम संभालते हैं।
- रज़वान (जन्नत का फ़रिश्ता)
- जन्नत के दरवाज़ों के रखवाले हैं।
फ़रिश्तों की खूबियाँ
- वे अल्लाह की लगातार तस्बीह (महिमा) करते रहते हैं।
- उन्हें भूख, प्यास, नींद या थकान नहीं होती।
- वे गुनाह नहीं करते।
- उनकी गिनती इतनी ज़्यादा है कि इंसान उसका अंदाज़ा नहीं लगा सकता।
- हदीस में आता है कि बैतुल-मआमूर (आसमान में काबा जैसा घर) में रोज़ 70,000 फ़रिश्ते तवाफ़ करते हैं और फिर कभी उनकी बारी दोबारा नहीं आती।
फ़रिश्तों पर ईमान की अहमियत
- अल्लाह की ताक़त और हिकमत को समझना – इतनी बड़ी मख़लूक़ सिर्फ अल्लाह की हुक्मबरदार है।
- इंसान के अंदर ज़िम्मेदारी का एहसास – जब इंसान जानता है कि उसके हर अमल को फ़रिश्ते लिख रहे हैं, तो वह गुनाह से बचने की कोशिश करता है।
- आख़िरत पर यक़ीन मज़बूत करना – कब्र में सवाल-जवाब और क़यामत के दिन के हालात फ़रिश्तों से जुड़े हुए हैं।
- अल्लाह की इबादत में लुत्फ़ – जब इंसान जानता है कि फ़रिश्ते भी लगातार इबादत कर रहे हैं, तो उसका दिल भी अल्लाह की याद में झुकता है।
अगर कोई फ़रिश्तों को न माने?
जो इंसान फ़रिश्तों का इंकार करे, वह इस्लाम से बाहर हो जाता है।
कुरआन में साफ़ तौर पर कहा गया है:
“जो अल्लाह, उसके फ़रिश्तों, उसकी किताबों, उसके रसूलों और आख़िरत के दिन का इनकार करे, वह गुमराह हो गया।”
(कुरआन – सूरह निसा 4:136)
निष्कर्ष
फ़रिश्तों पर ईमान इस्लाम की बुनियाद का हिस्सा है। वे अदृश्य हैं, लेकिन उनका वजूद हक़ है। उनका काम सिर्फ अल्लाह के हुक्म को पूरा करना है। मुसलमान के लिए ज़रूरी है कि वह कुरआन और हदीस में बताए गए मुताबिक़ फ़रिश्तों पर ईमान लाए और इस यक़ीन के साथ ज़िन्दगी गुज़ारे कि उसके हर अच्छे-बुरे काम को फ़रिश्ते लिख रहे हैं और एक दिन अल्लाह के सामने उसका हिसाब होगा।