अब्बासी – उमय्यद जंग (750 ईस्वी).


अब्बासी – उमय्यद जंग (750 ईस्वी) : इस्लामी इतिहास का बड़ा मोड़

इस्लामी इतिहास में कई जंगें और इंक़लाब ऐसे हुए हैं जिनसे पूरी दुनिया की सियासत और तहज़ीब बदल गई। उनमें से एक अहम जंग है अब्बासी – उमय्यद जंग (750 CE)। इस जंग ने न सिर्फ़ उमय्यद सल्तनत का अंत किया, बल्कि अब्बासी ख़िलाफ़त की बुनियाद भी रखी।

यह जंग सिर्फ़ तलवारों की टक्कर नहीं थी, बल्कि इसके पीछे राजनीति, नस्ल, और मज़हबी नाराज़गियाँ भी थीं। आइए इसे आसान भाषा में विस्तार से समझते हैं।


पृष्ठभूमि : उमय्यद सल्तनत की हालत

  • उमय्यद सल्तनत (661–750 ईस्वी) दमिश्क (सीरिया) से चलती थी।
  • उमय्यद ख़लीफ़ाओं ने इस्लामी साम्राज्य को बहुत बड़ा बना दिया था — स्पेन से लेकर भारत की सरहद तक
  • लेकिन इतने बड़े इलाक़े को संभालना आसान नहीं था।
  • कई लोग उमय्यद हुकूमत से नाराज़ थे:
    • अरबी नस्ल को तरजीह दी जाती थी, जबकि ग़ैर-अरब (मावाली) मुसलमान अपने आपको पीछे महसूस करते थे।
    • कुछ इस्लामी परिवार, ख़ासकर हज़रत अली र.अ. की औलाद और उनके समर्थक, उमय्यद से नाख़ुश थे।
    • करों और टैक्स की सख़्ती से भी आम लोग परेशान थे।

इन सब वजहों से उमय्यद सल्तनत के ख़िलाफ़ बग़ावत का माहौल बन गया।


अब्बासी आंदोलन की शुरुआत

  • उमय्यदों के ख़िलाफ़ एक मज़बूत तहरीक खड़ी हुई जिसे अब्बासी आंदोलन कहा जाता है।
  • “अब्बासी” नाम पड़ा क्योंकि यह आंदोलन हज़रत अब्बास इब्न अब्दुल मुत्तलिब (र.अ.), यानी नबी ﷺ के चाचा की नस्ल से जुड़े लोगों के नाम पर चला।
  • यह आंदोलन खास तौर पर ख़ुरासान (आज का ईरान और मध्य एशिया का हिस्सा) से शुरू हुआ।
  • यहाँ के लोग उमय्यदों से ज़्यादा नाख़ुश थे, इसलिए उन्होंने अब्बासियों का साथ दिया।

अबु मुस्लिम ख़ुरासानी

  • अब्बासी आंदोलन के सबसे अहम लीडर थे अबु मुस्लिम ख़ुरासानी
  • उन्होंने ख़ुरासान में लोगों को उमय्यदों के ख़िलाफ़ एकजुट किया।
  • उनके नेतृत्व में अब्बासी फ़ौज बहुत बड़ी और मज़बूत बन गई।

जंग की शुरुआत

  • 747 ईस्वी से अब्बासी आंदोलन ने खुलकर बग़ावत शुरू कर दी।
  • उमय्यद ख़लीफ़ा उस वक़्त मरवान II था।
  • मरवान II बहादुर था, लेकिन हालात उसके खिलाफ़ थे।
  • अबु मुस्लिम और अब्बासी फ़ौजें उमय्यद फ़ौज से टकराने लगीं।

जंग ए ज़ाब (Battle of the Zab, 750 CE)

  • आख़िरकार निर्णायक जंग ज़ाब नदी (Iraq) के किनारे लड़ी गई।
  • इस जंग को “Battle of the Great Zab” भी कहते हैं।
  • उमय्यद ख़लीफ़ा मरवान II ने बड़ी फ़ौज इकट्ठी की।
  • लेकिन अब्बासी फ़ौज में ज़्यादा जोश, संगठन और जनता का साथ था।
  • जंग बहुत सख़्त हुई, लेकिन अब्बासी फ़ौज ने उमय्यदों को शिकस्त दे दी।
  • मरवान II भाग गया, मगर बाद में पकड़ा गया और मारा गया।

नतीजा

  • 750 ईस्वी में उमय्यद सल्तनत का आधिकारिक अंत हो गया।
  • अब्बासी ख़िलाफ़त क़ायम हुई और इसका पहला ख़लीफ़ा बना अबुल अब्बास अल-सफ़्फ़ाह
  • दमिश्क की राजधानी अब बग़दाद (Iraq) में बदल दी गई, जिसे बाद में अब्बासियों ने बहुत शानदार शहर बनाया।

अब्बासी सल्तनत की ख़ास बातें

  1. अब्बासी ख़लीफ़ाओं ने इल्म, फन और साइंस को बहुत बढ़ावा दिया।
  2. बग़दाद उस वक़्त दुनिया का सबसे बड़ा इल्मी और तालीमी मरकज़ बन गया।
  3. ग़ैर-अरब मुसलमानों (ईरानी, तुर्क, आदि) को बराबरी मिली।
  4. इस्लामी दुनिया में गोल्डन एज ऑफ इस्लाम की शुरुआत हुई।

उमय्यद वंश का बच जाना

  • हालांकि उमय्यद सल्तनत ख़त्म हो गई थी, लेकिन एक शहज़ादा अब्दुर्रहमान अल-दाख़िल भागकर अल-अंदलुस (Spain) पहुँच गया।
  • वहाँ उसने नई उमय्यद हुकूमत क़ायम की जो कई सदियों तक चलती रही।
  • इस तरह उमय्यद नाम स्पेन में ज़िंदा रहा, जबकि मशरिक़ में अब्बासियों का दौर शुरू हो गया।

असर और अहमियत

  • यह जंग इस्लामी इतिहास में एक टर्निंग पॉइंट थी।
  • अगर उमय्यद जीतते, तो शायद दमिश्क ही हमेशा इस्लामी दुनिया की राजधानी रहता।
  • लेकिन अब्बासियों की जीत ने इस्लाम को नया दौर दिया, जिसे आज भी लोग इस्लामी सुनहरी दौर (Islamic Golden Age) कहते हैं।
  • इसने साबित कर दिया कि जब लोग एक हुकूमत से तंग आते हैं, तो बड़ी सल्तनत भी गिर सकती है।

सबक

  1. न्याय और बराबरी किसी भी हुकूमत की बुनियाद है। जब यह नहीं मिलता, लोग बग़ावत कर देते हैं।
  2. कुशल नेतृत्व (अबु मुस्लिम ख़ुरासानी और अबुल अब्बास) बड़ी से बड़ी ताक़त को गिरा सकता है।
  3. तहरीक सिर्फ़ तलवार से नहीं, बल्कि लोगों के दिल जीतकर चलती है।

नतीजा

अब्बासी – उमय्यद जंग (750 CE) ने न सिर्फ़ एक सल्तनत का अंत किया, बल्कि एक नए दौर की शुरुआत भी की।

  • उमय्यद दमिश्क में मिट गए, लेकिन स्पेन में ज़िंदा रहे।
  • अब्बासी ख़िलाफ़त ने बग़दाद से इस्लामी दुनिया को इल्म, साइंस और तहज़ीब का तोहफ़ा दिया।
  • यह जंग हमें याद दिलाती है कि इस्लामी इतिहास सिर्फ़ तलवारों की जंग नहीं, बल्कि इंसाफ़ और तालीम की तलाश की भी कहानी है।

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