अल्लाह पर ईमान….


अल्लाह पर ईमान (Allah par Imaan)

भूमिका

इस्लाम का सबसे बड़ा और पहला आधार है – अल्लाह पर ईमान। यानी यह मानना और विश्वास करना कि अल्लाह तआला ही इस पूरी कायनात (संसार) का पैदा करने वाला, पालने वाला और मालिक है। अगर कोई इंसान बाकी सारी इबादतें करे लेकिन उसके दिल में अल्लाह पर सच्चा ईमान न हो, तो उसकी इबादतें कबूल नहीं होतीं। इसलिए इस्लाम की शुरुआत ही ईमान से होती है।


अल्लाह कौन है?

अल्लाह अरबी भाषा का वह नाम है, जिसका अर्थ है – एकमात्र पूज्य, सृष्टि का रचयिता और पालनहार

  • वह न तो पैदा किया गया है और न किसी को उसने जन्म दिया।
  • वह बेनियाज़ है, किसी का मोहताज नहीं।
  • उसकी कोई सूरत, शक्ल या मिसाल नहीं।
  • वही सब कुछ जानता है और सब कुछ करने की ताक़त रखता है।

कुरआन मजीद में अल्लाह का साफ़ तआ’रुफ़ कराया गया है:

“कहो, वह अल्लाह एक है, अल्लाह बेनियाज़ है, न वह जनमा है और न जनमाया गया, और न कोई उसका समकक्ष है।”
(कुरआन – सूरह अल-इख़लास 112:1-4)


अल्लाह पर ईमान का मतलब क्या है?

अल्लाह पर ईमान रखने का अर्थ सिर्फ यह कहना नहीं है कि “अल्लाह है।” बल्कि इसका मतलब है:

  1. अल्लाह की ज़ात (सत्ता) पर यक़ीन – दिल से मानना कि अल्लाह ही मालिक है।
  2. अल्लाह की रबूबियत पर यक़ीन – वही सबका पैदा करने वाला, रोज़ी देने वाला और मौत-ज़िन्दगी देने वाला है।
  3. अल्लाह की उलूहियत पर यक़ीन – इबादत सिर्फ उसी की हो, न किसी मूर्ति की, न किसी इंसान की, न किसी और ताक़त की।
  4. अल्लाह की नामों और सिफ़ात (गुणों) पर यक़ीन – जैसे रहमान (सब पर रहम करने वाला), रहीम (बहुत मेहरबान), ग़फ़ूर (गुनाहों को माफ़ करने वाला), अलीम (सब कुछ जानने वाला)।

अल्लाह पर ईमान क्यों ज़रूरी है?

  1. ज़िन्दगी का मकसद समझने के लिए – जब इंसान अल्लाह को मानता है, तो उसे समझ आता है कि वह बे-मक़सद पैदा नहीं हुआ, बल्कि अल्लाह की इबादत और नेक ज़िन्दगी के लिए पैदा हुआ है।
  2. सुकून और इत्मीनान के लिए – मुश्किल और परेशानियों में इंसान को अल्लाह पर भरोसा होता है कि वही मददगार है।
  3. सही-ग़लत का फ़ैसला करने के लिए – अल्लाह की किताब (कुरआन) और रसूल ﷺ की हिदायत के बिना इंसान सही राह नहीं पकड़ सकता।
  4. आख़िरत की नजात (मुक्ति) के लिए – क़यामत के दिन वही काम आएगा जो अल्लाह की खातिर किया गया हो।

कुरआन में अल्लाह पर ईमान की अहमियत

कुरआन मजीद में बार-बार यह कहा गया है कि ईमान लाओ, ताकि कामयाब हो सको।

  • “जो लोग ईमान लाए और नेक काम किए, उनके लिए बाग़ात (जन्नत) हैं जिनके नीचे नहरें बहती हैं।” (कुरआन – सूरह बक़रा 2:25)
  • “अल्लाह पर और उसके रसूल पर ईमान लाओ और उसी से डरो, ताकि तुम्हें रहमत मिल सके।” (कुरआन – सूरह हदीद 57:28)

पैग़म्बरों की दावत

सभी नबी और रसूल सबसे पहले अपनी कौम को यही दावत देते रहे कि –
“अल्लाह को अपना रब मानो और सिर्फ उसी की इबादत करो।”

  • हज़रत नूह (अ.स.) ने कहा: “ऐ मेरी कौम! अल्लाह की इबादत करो, उसके सिवा तुम्हारा कोई माबूद नहीं।” (कुरआन – सूरह अ़राफ 7:59)
  • हज़रत इब्राहीम (अ.स.) ने अपनी कौम को मूर्तियों से रोककर सिर्फ अल्लाह की तरफ बुलाया।
  • आख़िरी रसूल हज़रत मुहम्मद ﷺ ने भी सबसे पहले यही ऐलान किया: “ला इलाहा इल्लल्लाह” यानी “अल्लाह के सिवा कोई पूज्य नहीं।”

अल्लाह पर ईमान लाने वाले की ज़िन्दगी

जिस इंसान के दिल में अल्लाह पर ईमान होता है, उसकी ज़िन्दगी में यह बदलाव आते हैं:

  1. तवक्कुल (भरोसा) – हर हाल में अल्लाह पर भरोसा करता है।
  2. तक़वा (परहेज़गारी) – गुनाह से बचने और नेक काम करने की कोशिश करता है।
  3. शुक्र (आभार) – नेमत मिलने पर शुक्र अदा करता है।
  4. सब्र (धैर्य) – मुसीबत आने पर सब्र करता है।
  5. इन्साफ़ और रहमदिली – दूसरों के साथ अच्छा बर्ताव करता है, क्योंकि जानता है कि अल्लाह सब देख रहा है।

अल्लाह पर ईमान न रखने वालों का अंजाम

कुरआन कहता है कि जो लोग अल्लाह को नहीं मानते या उसके साथ दूसरों को साझी ठहराते हैं (शिर्क करते हैं), उनके आमाल चाहे कितने भी अच्छे क्यों न हों, आख़िरत में उन्हें नजात नहीं मिलेगी।

“निश्चय ही अल्लाह उसके गुनाह को नहीं माफ़ करेगा कि उसके साथ किसी को शरीक ठहराया जाए। इसके अलावा जिस गुनाह को चाहे माफ़ कर देगा।”
(कुरआन – सूरह निसा 4:48)


निष्कर्ष

अल्लाह पर ईमान इस्लाम का पहला और सबसे अहम आधार है। यही वह रोशनी है जो इंसान की ज़िन्दगी को सही राह दिखाती है। जब इंसान अल्लाह को एकमात्र मालिक मानकर उसकी इबादत करता है, तभी उसकी ज़िन्दगी मक़सद वाली और परिपूर्ण बनती है।

👉 इसलिए हर मुसलमान का फ़र्ज़ है कि वह अपने दिल, अपनी ज़ुबान और अपने अमल से अल्लाह पर सच्चा ईमान लाए और उसी के बताए रास्ते पर चले।


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