हज़रत आदम अलैहिस्सलाम.


हज़रत आदम (अलैहिस्सलाम) – इस्लामिक दृष्टिकोण से

इस्लामिक इतिहास में सबसे पहले नबी और सबसे पहले इंसान का नाम है हज़रत आदम (अलैहिस्सलाम)। अल्लाह तआला ने इन्हें अपनी ख़ास क़ुदरत से पैदा किया और सारी इंसानियत को इनकी औलाद बनाया। क़ुरआन करीम और हदीस शरीफ़ में हज़रत आदम (अ.स.) का ज़िक्र विस्तार से मिलता है।

आदम (अ.स.) की पैदाइश

अल्लाह तआला ने जब इस दुनिया को बनाने का इरादा किया तो सबसे पहले फ़रिश्तों को बताया कि:

“मैं ज़मीन पर एक ख़लीफ़ा (प्रतिनिधि) बनाने वाला हूँ।”
(क़ुरआन, सूरह बक़रः 30)

फ़रिश्तों ने हैरत से पूछा कि क्या आप ऐसे को बनाएँगे जो फ़साद करेगा और ख़ून बहाएगा? लेकिन अल्लाह तआला ने फ़रमाया: “मैं वो जानता हूँ जो तुम नहीं जानते।”

इसके बाद अल्लाह ने मिट्टी से आदम (अ.स.) का ख़ाक़ा (ढाँचा) बनाया। फिर उसमें अपनी रूह फूँकी और आदम (अ.स.) ज़िन्दा हो गए। यही से इंसानियत का सिलसिला शुरू हुआ।

आदम (अ.स.) को इल्म (ज्ञान) दिया गया

अल्लाह तआला ने आदम (अ.स.) को तमाम चीज़ों के नाम और उनका इल्म सिखाया। यह अल्लाह की तरफ़ से एक बड़ा शरफ़ (सम्मान) था। जब फ़रिश्तों से पूछा गया कि इन चीज़ों के नाम बताओ तो वे न बता सके। फिर आदम (अ.स.) ने सभी नाम बताए। इस तरह अल्लाह ने दिखा दिया कि आदम (अ.स.) को इल्म की वजह से फ़रिश्तों पर फ़ज़ीलत (श्रेष्ठता) हासिल है।

फ़रिश्तों का सज्दा

अल्लाह तआला ने फ़रिश्तों को हुक्म दिया कि आदम (अ.स.) के सामने सज्दा करो। सब फ़रिश्तों ने सज्दा किया, लेकिन इब्लीस (शैतान) ने सज्दा करने से इंकार किया। उसका कहना था कि मैं आग से बना हूँ और आदम मिट्टी से बने हैं, इसलिए मैं बेहतर हूँ। घमंड और नाफ़रमानी की वजह से इब्लीस लानती और रद्द कर दिया गया।

जन्नत की ज़िन्दगी और इम्तिहान

अल्लाह तआला ने आदम (अ.स.) और उनकी पत्नी हव्वा (अ.स.) को जन्नत में रखा और कहा कि यहाँ आराम से रहो, हर नेमत का इस्तेमाल करो, मगर एक ख़ास दरख़्त (पेड़) के क़रीब मत जाना।

लेकिन शैतान ने धोखा देकर आदम और हव्वा को बहकाया। उसने कहा कि यह पेड़ अमर (हमेशा की ज़िन्दगी) और बादशाही का है। धोखे में आकर उन्होंने उस पेड़ का फल खा लिया। नतीजा यह हुआ कि अल्लाह तआला ने उन्हें जन्नत से नीचे ज़मीन पर उतार दिया।

तौबा और मग़फ़िरत

हालाँकि आदम (अ.स.) से ग़लती हुई, लेकिन उन्होंने फ़ौरन अल्लाह से तौबा की। क़ुरआन में आता है:

“हमने आदम को कुछ कलिमात सिखाए, उन्होंने उनसे दुआ की और अल्लाह ने उनकी तौबा क़ुबूल कर ली।”
(सूरह बक़रः 37)

इससे मालूम होता है कि इंसान ग़लती कर सकता है, लेकिन अल्लाह की रहमत बहुत बड़ी है।

आदम (अ.स.) की ज़िन्दगी

आदम (अ.स.) को अल्लाह ने नबूवत दी। वे अपने बेटों और क़ौम को अल्लाह की इबादत करने और नेक राह अपनाने की तालीम देते रहे।

उनके बेटों में हाबील (Abel) और क़ाबील (Cain) मशहूर हैं। क़ाबील ने अपने भाई हाबील की क़त्ल कर दिया, जो इंसानियत की पहली हत्या थी। इस घटना से यह सबक़ मिलता है कि इंसान के अंदर अगर नफ़्स (हवस और ग़ुस्सा) काबू में न हो, तो वह बड़ा गुनाह कर बैठता है।

इंसानियत के पहले नबी

हज़रत आदम (अ.स.) ही वह पहले इंसान हैं जिन्हें अल्लाह ने सीधे अपने हाथों से पैदा किया। इन्हें ही पहला नबी बनाया गया। सारी इंसानियत उन्हीं की औलाद है। क़ुरआन में उन्हें अबुल-बशर (यानी इंसानों का बाप) कहा गया है।

सबक़ (सीख)

हज़रत आदम (अलैहिस्सलाम) की ज़िन्दगी से हमें कई अहम सबक़ मिलते हैं:

  1. इल्म की अहमियत – इंसान को अल्लाह ने इल्म की वजह से इज़्ज़त दी।
  2. तकब्बुर (घमंड) की बुराई – शैतान सिर्फ़ घमंड की वजह से हमेशा के लिए रद्द कर दिया गया।
  3. ग़लती पर तौबा – इंसान ग़लती करता है, लेकिन तौबा से अल्लाह माफ़ कर देता है।
  4. इम्तिहान – जन्नत में भी आदम (अ.स.) को आज़माया गया, इससे पता चलता है कि दुनिया में इंसान हर हाल में इम्तिहान से गुज़रता है।
  5. नफ़्स पर क़ाबू – क़ाबील और हाबील की घटना से मालूम होता है कि ग़ुस्सा और हसद इंसान को बरबाद कर देता है।

वफ़ात (मौत)

रिवायतों के मुताबिक़ हज़रत आदम (अ.स.) ने लगभग 1000 साल ज़िन्दगी पाई। उनकी वफ़ात के बाद नबियों का सिलसिला जारी रहा और एक-एक करके इंसानियत को हिदायत मिलती रही।


निष्कर्ष

हज़रत आदम (अलैहिस्सलाम) इस्लाम के नज़रिए से पहले नबी और पहले इंसान हैं। उनकी ज़िन्दगी इंसान के लिए एक मिसाल है। उनसे हमें यह सिखने को मिलता है कि अल्लाह की इबादत, इल्म की क़द्र, ग़लती पर तौबा, और नफ़्स पर क़ाबू बहुत ज़रूरी है।.

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